“आसमान पर छाए बादल ,
“आसमान पर छाए बादल ,
गड़-गड़ गड़-गड़ बाजे बादल l
मंद मंद बुँदे झटपट आई ,
धरती के आँचल को भाई l
ठंडी ठंडी हवाओ की बौछार ,
गर्मी दूर करने का औजार l
बच्चे है तैयार कागज की नाव चलाने में ,
लजीज पकोड़े है आतुर मन ललचाने में l
गर्मी से थे जो चेहरे पस्त ,
बरखा ने कर किया उनको मस्त l
मन लुभावना हुआ सावन ,
कण कण हो गया पावन l
निष्ठुर गर्मी की मनमानी ,
हो गयी पानी पानी l
रोम रोम को प्रफुलित करती ,
आई बरखा इतराती l”
“नीरज कुमार सोनी”
“जय श्री महाकाल”