आसक्ति
आसक्ति श्वांस में ज्वर लाती है, एक व्यग्रता। व्यग्रता मन की शान्ति को हर लेती है। और मन की शान्ति के बिना तुम बिखर जाते हो, टूट जाते हो और दुःखी होते हो।
दुर्भाग्यवश, अधिकांश व्यक्ति इसे समझने में देर कर देते है। इससे पहले कि तुम पूरे बिखर जाओ, अपने आप को संभालो और अपनी श्वांस की व्यग्रता को समर्पण और साधना द्वारा दूर करो।
जब कोई आसक्ति के सागर में डूब रहा हो, उस समय शरणागति ‘लाईफ जैकेट’ है। आसक्तियों से संघर्ष किये बिना अपनी ज्वरित श्वांस पर ध्यान दो और अपने आंतरिक मौन की शीतलता में जाओ। विश्राम करो। इस दिशा में तुम्हारा पहला कदम है- अपनी आसक्ति को ज्ञान की ओर, ईश्वर की ओर मोड़ देना।
सांसारिकता के प्रति तुम्हारी अनासक्ति तुम्हारा आकर्षण है और दिव्यता के प्रति तुम्हारी आसक्ति ही तुम्हारा सौन्दर्य है।
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