आश्रय
विष्णु जी और दिव्या जी की शादी हुए ४० वर्षों से अधिक बीत चुका था दो लड़का और दो लड़की हैं, सभी की शादी हो चुकी थी। विष्णु जी रिटायर कर चुके थे। घर में अपनी पत्नी के साथ सुखमय जिंदगी बिता रहे थे । उनका गुजारा पेंशन से आराम से चल रहा था ।
सावन का महीना शुरू हो चुका था और चार-पांच दिन से बारिश हुई जा रही थी। विष्णु जी घर में बैठे अपनी धर्मपत्नी दिव्या को बोल रहे थे कि आज चार-पांच दिन हो चुका है मॉर्निंग वॉक के लिए नहीं जा पा रहा हूं ।उस पर दिव्या जी का बड़े मीठे स्वर में विष्णु जी से बोलती हैं, चार-पांच दिन हो गए आप मॉर्निंग वॉक नहीं बल्कि अपनी मंडली से मिलने भी नहीं जा सक रहे है, यही बात आपको खाए जा रहा यह लग रहा मुझे । आप यह भी ख्याल कर लीजिए कि 4 – 5 दिन से घर में सब्जी का बाजार नहीं हुआ है ,आपका ऑर्डर भी पूरा होते जा रहा है आज अगर सब्जी बाजार नहीं गए तो शाम में सावन वाली बारिश तो होगी मगर गरम -गरम पकोड़ा का मांग मत कीजिएगा । विष्णु जी ने सर हिलाकर अपनी रजामंदी जाहिर की आज बाजार जाना ही होगा।
दोपहर के खाने के बाद दिव्या जी विष्णु जी को बोलती है कि मेरा दो- तीन दिनों से शरीर अच्छा नहीं लग रहा। विष्णु जी कहा कल डॉक्टर के पास ले जाऊंगा। मैं डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लेता हूं। विष्णु जी और दिव्या जी का परसों शादी का सालगिरह आने वाली थी। विष्णु जी सुबह को ही दिव्या जी का मनपसंद केक का ऑर्डर दे आए थे। शाम होने के बाद दिव्या जी ने कहा मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रहा। आज दोपहर का खाना ज्यादा बन चुका है वही रात में खा लीजिएगा ,ठीक है। मेरा भी पेट भारी -भारी लग रहा है तो मैं भी कुछ हल्का ही खाऊंगी और ज्यादा तबीयत खराब लगता है तो डॉक्टर के पास चली जाऊंगी । देखो ना हम दोनों के हालात कैसे हैं ? ऐसा लगता है राजा दशरथ की तरह मरने के वक़्त पानी देने वाला कोई संतान नहीं रहेगा ….. .बात को काटते हुए ऐसा क्यों बोल रही हो मैं तो तुम्हारे संग हूं और तुम्हारा हमारे साथ सात जन्मों का संग है। दिव्या जी आप मेरी जिंदगी में जब से आए हो एक सच्चे मित्र के तरह रहे हो।विष्णु जी ने दिव्या जी के हाथ पकड़ कर कहा आप मेरे सच्चे मित्र की तरह पांव से पांव और कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे है ।
तभी फोन का रिंग आया देखो लगता है आप के मित्र महेश जी का फोन होगा लगता उन्हें भी घर में मन नही लग रहा होगा। विष्णु जी ने मुस्कराते हुए फोन को उठाया बोलो महेश क्या बात है बारिश का मजा ले रहे हो ।महेश ने कहा नही अब बुढ़ापा का मजा ले रहा हूं ।यूं ही फोन कर रहा था सोते- सोते सारे शरीर अकड़ सी गई है। एक तुम ही हो जो बचपन से आज तक हर सुख -दुख ,धूप – छांव में बड़े भाई का तरह साथ दिया और तुम ने भी तो सुदामा के तरह मुझे भी आलिंगन करके रखे हो ,अच्छा रखता हूं अगर बारिश कल नही हुई तो सुबह मिलते है कुछ खास बात करनी है मुझे तुमसे ।
हां, जी मेरी परी जैसी प्यारी धर्मपत्नी महेश का ही फोन था । हां पता हैं, मुझे आप की हंसी मुख से पता चल गया महेश है। तुम तो महेश को सौतन ही समझती हो शायद तुम जानती ही नहीं कि जब पिता जी साथ महेश ही तुमको देखने गया था और मुझ से पहले महेश से ही आप की भेट हुई है । वो अगर आपको पसंद नहीं करता तो आप मेरी संगनी नहीं हो पाती ।दिव्या जी, पिताजी ने तो मना ही कर दिया था । हां, पता है मुझे पिताजी ने कहा था कि मैं सुंदर थी बोले कि घर संभाल नही पाऊंगी। वो महेश की जिद से आप मेरी जिंदगी में रंग भर दिए। दिव्या जी महेश ने हर मोड़ में मेरा साथ दिया हैं और बचपन में जब पापा से ना बोल कर तलाब में तैराकी सीखने गया था और महेश ने अपने जान पर खेलकर मुझे डूबते हुए बचाया था। ये जीवन तो उसकी दूसरी देन हैं ।हां , मुझे पता है दिव्या जी मेरे पिताजी किसान थे और मैं किसान का बेटा । स्कूल, कॉलेज और ट्यूशन करते समय महेश ने मेरी फीस कितने बार ही भरा शायद ही मैं इसका हिसाब कर पाऊंगा। मैं सदा ही महेश का ऋणी रहूंगा। कृष्ण और सुदामा की तरह और वो मुझे सच्चे मित्र की तरह जिंदगी की हर मोड़ साथ देता रहा ….इसलिए तो सब आप की दोस्ती की कसम पूरी आप की मंडली खाते है । लेकिन आज महेश से फोन पर बात करने से लगा वो बहुत दुविधा में या कोई परेशानी में है। मुझे बात करने मे उसके स्वर उखड़ रहे थे पता नहीं क्या बात हुई है ?
रात बहुत हो चुकी है शायद गोधली बेला भी कुछ देर में हो जाए लेकिन आज महेश का करवट बदल – बदल कर नींद नहीं आई।वह सोच कर व्याकुल हो रहा था और हताशा की याद में जल रहा था कि कैसे अपने परम मित्र जैसे भाई को बता पाएंगे कि कौन पीढ़ा से जूझ रहा हूं? उम्र होने से शारीरिक समस्या तो होती ही है लेकिन उसके साथ मानसिक पीढ़ा आने से जीवन का स्वाद और फीका हो जाता है। महेश का बीवी काव्या का स्वर्गवास कोरोना में ही हो गया था ।तभी से घर में बहु – बेटे का उत्पीड़न बढ़ चुका है ।महेश की पत्नी काव्या उसकी ढाल थी।ये अब यह चिंता खाई जा रही थी की अब तक उसने अपने दोस्त विष्णु से ये बात छिपा कर रखा था पर कल मैं उसे अब बता दूंगा और अपने नए आश्रय की ओर जाऊंगा।
पो फटने से पहले ही विष्णु महेश से मिलने पार्क पहुंचा
महेश ने बताया कि मैं आज से पहले ये बात तुमको कभी भी महसूस होने नहीं होने दिया विष्णु जो आज हम तुमको बताने जा रहा हूं। मेरा प्यारा एकलौता बेटा शादी के बाद पहले जैसा नहीं रहा है ।मुझसे मीठी- मीठी बात करके सारी जायदाद अपने नाम करवा लिया । पहले तो मेरा कमरा ले लिया और मुझे घर के रिनोवेशन के नाम पर नौकरों वाले कमरे में रख दिया ।फिर कुछ दिन बाद बेटा और बहू मिलकर मेरे साथ अमानवीय व्यवहार करना शुरू कर दिया । दिन पर दिन महीनों पे महीनों यह सिलसिला चलता जा रहा है। अब सहन नहीं हो रहा है। यह कहते हुए दोनों के आंखों में आंसू आ गए ।विष्णु अब मैं घर छोड़कर वृद्धा आश्रम में रहने जा रहा हूं इसलिए अंतिम बार तुमसे भेंट करने आया हूं। शायद मैं अब वही सकून की जिंदगी बिता पाऊं। विष्णु ने कहा बिलकुल नहीं तुम वृद्धा आश्रम मे नहीं बल्कि मेरे घर में मेरे साथ रहोगे और तुम इसके लिए ना नहीं करोगे , अब चलो।
आज मेरी सालगिरह है और मैं अपनी जीवन संगनी को यहीं तोफा दूंगा । यही हमारा नया आश्रय होगा ।दोनों मित्र के मुख में अजीब सी आभा थी और खुशी- खुशी अपनी आश्रय की ओर प्रस्थान करते है ।
विष्णु ,दिव्या और महेश को एक नया लक्ष्य अपने जीवन को मिला । तीनों ने मिल कर एक एनजीओ के साथ मिलकर आपने घर को आश्रय आश्रम मे बदल कर और भी कुछ लोगो को जोड़ कर आपनी जीवन के अंतिम समय बिताने लगे।
दुख और सुख जीवन का स्वाद है जिस तरह भोजन में खट्टा, मीठा, तीखा और नमकीन ।जीवन में एक सच्चा मित्र होना भी आवश्यक है।
शिक्षा : ईमानदारी सभी रिश्तों में बनाई रखनी चाहिए। सच्चा दोस्त का संबंध पति पत्नी के जैसा जन्मों जन्मांतर तक रहता है ।