शायर अपनी महबूबा से
छुप-छुप कर
मेरा दीदार न कर
चोरी-चोरी
आंखें चार न कर…
(१)
या तो खुलकर
तू मुझसे
प्यार जता
या फिर कह दे
तू मुझसे
प्यार न कर…
(२)
इस खेल को
सच न
समझ बैठूं
मज़ाक की सीमा
पार न कर…
(३)
मैं तुझसे नहीं
मिल सकती कभी
झूठ-मूठ में
मेरा इंतज़ार न कर…
(४)
एक तेरी जुदाई
काफ़ी है
बेगानों से मिलकर
वार न कर…
(५)
जैसा भी हूं
तेरा आशिक हूं
मेरी ज़िंदगी
बेकार न कर…
(६)
ऐसे नगमों और
ग़ज़लों में
दर्दे-दिल का
इज़हार न कर…
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Shekhar Chandra Mitra
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