आशिकी प्रेम का पैगाम मांगती
आशिकी प्रेम का पैगाम मांगती -2
बदले में घर परिवार की बलिदान मांगती
प्रेम की रंगभूमि में खरा उतरने के लिए
इंतिहान मांगती .
तू आजा मेरे साथ
रंगरेलिया मनाऊंगी
मां क्या सुनाई होगी
जो लोरियां सुनाऊँगी
गा गा के वह जुबान मांगती
आशिकी प्रेम का ……….
देख लेना मैं तुझे
क्या से क्या बना दूंगी
देवता से पत्थर
या पत्थर से देवता बना दूंगी
एक बार अगर आए तो
सारा अरमान मांगती
आशिकी प्रेम का……….
तू फिदा हो जाए इस कदर
मालूम हो बदल गया मेरा मुक़द्दर
तू जानता नही
मैं कितनो का घर -बार लूटी हूं
जुड़-जुड़ कर कई बार टूटी हूं
कई जान गवाँ बैठे
फिर भी जान मांगती
आशिकी प्रेम का………..
इसका न कोई मां बाप है
कहती है सिर्फ आप हैं बस आप हैं
नादानी का शिकार करती
जवानी को बेकार करती
कर-कर के जुर्म इंसाफ मांगती
आशिकी प्रेम का ……….
कौन जानता नही
इसे पहचानता नही
दिल के दरवाजे को खटखटाती है
आशिक को तड़पाती है
कुछ करने को बार बार उकसाती है
सौतन की तरह जान की दुश्मन बन जाती है
अक्सर ए इश्क का निशान मांगती
आशिक़ी प्रेम का …………
इश्क सोच समझ कर कीजियेगा
साहिल की कलम से ?