“आकांक्षा” हिन्दी ग़ज़ल
याद आती रहे, दिल मचलता रहे,
काव्य-सरिता का जल, यूँ ही बहता रहे।
चाँदनी सी धवल, प्रीति प्रतिदिन बढ़े,
पर, अमावस का साम्राज्य, घटता रहे।
वाहवाही का भी, दौर चलता रहे,
वृक्ष, सहचार का, बस पनपता रहे।
मनमुटावों की अब ना, जगह हो कोई,
दिल कथा प्रेम की, यूँ ही कहता रहेl
अब निराशा का हो, कोई कारण नहीं,
बीज “आशा” का नित, यूँ ही उगता रहे..!