आशा और आस्था
आस्था आशा की जननी है।
कर्म प्रधान जीवन में अनथक प्रयत्न करने पर भी जब असफलता हाथ लगती है , तब निराशा की उत्पत्ति होती है।
असफलता के कई कारण हो सकते हैं जैसे परिस्थिति जन्य , व्यक्तिगत अकुशलता , अनपेक्षित असहयोग , प्रतिकूल समय , कार्य निष्पादन की त्रुटियां , प्रतिस्पर्धा का तनाव ,
आकलन की कमियां , असंभावित बाधाएं ,
आत्मविश्वास एवं दृढ़संकल्प की कमी इत्यादि।
असफलता की दशा में परमशक्ति पर आस्था रखने वाले व्यक्तिविशेष को परमशक्ति के अस्तित्व की भावना ; उसे पुनः प्रयत्न करने के लिए प्रेरित करती है , और स्फुरित आशा की एक किरण उसके अंतःकरण में जगाती है।
इसके विपरीत परमशक्ति के अस्तित्व को ना मानने वाले व्यक्तिविशेष के लिए असफलता की दशा उसे घोर निराशा से भर देती है , और आत्मआकलन से स्वयं को दोषी मानकर ; मानसिक तनाव के चलते उसके अवसाद ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ जातींं हैं।
उसमें निराशा का सामना कर पुनः प्रयत्न करने की आशा प्रेरित ऊर्जा का संचार नहीं हो पाता है , तथा उसे निराशा का सामना करने का कोई विकल्प भी नहीं सूझता है।
अतः असफलता को भुलाने के लिए उसके व्यसनग्रस्त होने की संभावनाएं भी बढ़ जातींं हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि परमशक्ति पर आस्था ; वह आशा की किरण है ,जो हमें नकारात्मकता से परे ऊर्जावान मनोबलयुक्त रखकर जीवन पथ पर सतत् अग्रसर रहने को प्रेरित करती है।