आवारा परिंदा
बहती हवा का ठिकाना न पूछो,
हम्ही से हमारा फसाना न पूछो।
है आवारा परिंदे कल चले जायेंगे,
होता कहां है आना जाना न पूछो।
मुसाफिर कही कभी रुकता कहां है,
कल होगा कहां आशियाना न पूछो।
ठहरा है वक्त कब किस के लिए जो,
भूले बिसरों से गुजरा जमाना न पूछो।
मिलती कहां है अब सच्ची मोहब्बत
पता आशिकों का मयखाना न पूछो।
रंगीन बहुत है आज महफिल तुम्हारी,
मदहोशी का कितना पैमाना न पूछो।
अकेला चला हूं जिंदगी के सफर में,
है कौन अपना कौन बेगाना न पूछो।
अनजान हर शख्स से मैं तो यहां पर,
मेरा किस किस है दोस्ताना न पूछो।
@साहित्य गौरव