आल्हा छंद
सृजन शब्द-सीमा
16,15
चोपाई+चौपई
4+4+4+4, 4+4+4+21
सीमा पर ही लड़ते-लड़ते, फौजी हो जाते हैं कुर्बान।
डटे रहे वो सर्दी गर्मी,आये कितने ही तूफान।
आँख दिखाए दुश्मन उनको, ले लेते हैं उनकी जान।
रख बंदूके हाथों में चलते, खड़े रहे वो सीना तान।
जब जब दुश्मन ने ललकारा, मोर्चा संभाले आन।
दूध छठी का याद दिलाते, करते उसका काम तमाम।
कितनी ही हैं पीड़ा सहते,चुप है रहती सदा जुबान।
अंतिम साँसों तक है लड़ते, सीमा रक्षा करें जवान।
निडर मौत को गले लगाते, राष्ट्र गीत का करते गान।
लिपट तिरंगे में सो जाते, रखे देश का कायम मान।
सीमा शर्मा ‘अंशु’