आल्हा छंद
आल्हा छंद
सात दशक की यह आजादी,भारत निज भाषा से हीन।
चाहे जितनी करें तरक्की ,भाषा बिन लगता है दीन।।
चन्द्रयान का डंका पीटा,सूर्ययान की भरता शान।
वीर शहीदों की इच्छा का,पूरा हुआ नहीं अरमान।।
हिंदी भाषा बाट जोहती, क्यों भूली मेरी संतान ।
राष्ट्र भाषा नहीं स्वीकारी, हिंद देश की जो पहचान ।।
एक समय कुछ आशा जागी,अटल दिया था शुभ संदेश ।।
राजनीति में भारत उलझा,धर्म सनातन मेरा देश।।
सबको प्यारी भाषा हिंदी, मांग रही सड़कों पर भीख ।
अंग्रेजी पहुँची घर घर में ,तोतिल बोली निकले चीख।।
जश्न मनाते हैं हिंदी का, झूठा देते है सम्मान ।।
एक दिवस की तस्वीरों से, कैसे हो हिंदी उत्थान ।।
समझ नहीं आता है भाई, कैसे हो हिंदी उद्धार ।
अपने ही जब दुश्मन बनते, हिंद विजय हिंदी की हार।।