आल्हा छंद (बरसात पर)
आल्हा छंद 16,15 अन्तमे 21
करो वंदना बादल की तो ,उमड़ घुमड़ आये बरसात।
भरे तलैया सिमट सिमट कर, मूसलधार पड़े दिन रात।
चपला चमक लगे चंचल सी,पल पल मानो आँख दिखाय।
काले मेघ चढ़े नभ ऊपर,गरजन कर के सबै डराय।
टर्र टर्र दादुर टर्राते ,झींगुर देखो बीन बजाय।
मेघ देखकर मोर मस्त हो,कोयल मीठी तान सुनाय।
कलम घिसाई