आलेख- लोककवि ईसुरी
आलेख-लोक कवि- “ईसुरी”
ईसुरी वास्तव ने बुंदेली के सिरमोर कवि थे ईसुरी की चौकड़िया आज भी बुंदेलखंड में बहुत लोकप्रिय है। ईसुरी की बुंदेली को ही वर्तमान सबसे शुद्ध और मानक माना जाता है। उनकी बुंदेली में जो लालित्य और माधुर्य है वह अन्य में नहीं मिलता है।
डां हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से ईसुरी नाम से ईसुरी पर केन्द्रित एक शोध पत्रिका प्रकाशित होती है।
ईसुरी के जन्म स्थान मेंढकी में ईसुरी शोध संस्थान है। झांसी, बांदा सागर में ईसुरी पर बहुत शोध हुए है। ईसुरी पर अनेक लोगों ने पीएचडी एवं शोध किये है।
ईसुरी की अनेक चौकड़िया विश्व विद्यालय में पढ़ायी जाती है। ईसुरी के साहित्य को पढ़ें बिना बुंदेली का सही और असली आनंद नहीं लिया जा सकता।
रजउ पर लिखी उनकी चौकडियां एवं फागें बुंदेली का अनुपम साहित्य है।- आदिवासी लोककला एवं संस्कृति अकादमी भोपाल द्वारा ईसुरी पर दर्जनों ग्रंथ छप चुके हैं।
उनकी फागे आज भी गांवों में गायी जाती है।
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आलेख- *राजीव नामदेव राना लिधौरी
मप्र* अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़,
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़,
महामंत्री अ.भा.बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद, टीकमगढ़
टीकमगढ़ (मप्र) भारत
मोबाइल-9893520965