आलस का आकार
आलस का आकार
मै कुछ लिख रहा था,एक जिवन के बारे मे
एक एसा जिवन,जो काफी आसन हो
रोज जीने के लिये,कुछ सहना ना पड़ता हो
रोज रोटी के लिये,लड़ना ना पड़ता हो
बस सब कुछ मिल जाये,यूही बस हाथो मे
यूही सोचा और सब कुछ सामने
कितना आसन होगा ,वो जिवन
सब कितने मोह से संभालेंगे उसे
अपने ही हाथो से और सवारेंगे उसे
मै तो बस रुक सा गया उसी समय मे
फिर अचानक घड़ी ने चार बजाये
और आंखे खुल गई
और मै कुछ मुस्कराया उस सोच पर
जिससे कुछ दूर तक मै घिर सा गया था
मै उसे सौभाग्य मान रहा था
पर वो तो बस मेरा आलस निकला
जिसने नींद मे ही आकार लिया
और निकलते सुर्य ने उसका विनाश किया