*आर्य समाज को ‘अल्लाहरक्खा रहमतुल्लाह सोने वाला’ का सर्वोपरि
आर्य समाज को ‘अल्लाहरक्खा रहमतुल्लाह सोने वाला’ का सर्वोपरि ऐतिहासिक योगदान: स्वामी अखिलानंद सरस्वती जी
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रामपुर (उत्तर प्रदेश), 28 अगस्त 2024 बुधवार आर्य समाज मंदिर, पट्टी टोला, के त्रि-दिवसीय श्रावणी पर्व का आज तीसरा दिन विशेष बौद्धिक चर्चा से ओतप्रोत रहा।
स्वामी जी ने बताया कि 1875 में जब कॉंकड़वाड़ी (मुंबई) में आर्य समाज की स्थापना हुई और महर्षि दयानंद ने जब इस अवसर पर आर्य समाज के उपदेशों के लिए एक सत्संग भवन की आवश्यकता को पूरा करने हेतु जनता से दान की अपील की तो जिन दानदाताओं ने 1875 ईस्वी में बड़े-बड़े दान दिए, उनके नाम आज भी कॉंकड़वाड़ी आर्य समाज में एक पत्थर पर अंकित है। इन दानदाताओं की सूची में पॉंच हजार एक सौ रुपए दान देने वाले अल्लाहरक्खा रहमतुल्लाह सोने वाला का नाम दानदाताओं की सूची के शीर्ष पर पहले नंबर पर अंकित है। तात्पर्य यह है कि महर्षि दयानंद और उनकी शिक्षाओं ने समस्त मानवता को धर्म-जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर प्रभावित किया था।
स्वामी अखिलानंद जी ने बताया कि आज हम 5100 रुपए के दान के महत्व को भले ही न समझ पाएं लेकिन यह 1875 का वह दौर था जब एक पैसे में एक सेर दूध मिलता था । इस अनुपात से ‘अल्लाहरक्खा रहमतुल्लाह सोने वाला’ का योगदान आज की तारीख में पैंतीस लाख रुपए का बैठता है। 1875 की तुलना में महंगाई इतनी कैसे बढ़ गई ?- इसकी गणना भी आपने श्रोताओं को बैठे-बैठे करवा दी । कहा कि मथुरा में गुरुवर बिरजानंद के पास जब महर्षि दयानंद विद्या प्राप्त करने के लिए गए । दरवाजे की कुंडी खटखटाई तो भीतर से गुरु बिरजानंद ने प्रश्न किया- कौन ? महर्षि दयानंद ने उत्तर दिया -“यही जानने के लिए तो आया हूं”
बस फिर क्या था गुरु बिरजानंद ने महर्षि दयानंद को अपना शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया। लेकिन कहा कि रहने की व्यवस्था और खाने की व्यवस्था तुम्हें खुद करनी होगी। स्वामी दयानंद दो सेर दूध सुबह पीते थे और दो सेर दूध शाम को पीते थे। दूध की व्यवस्था के लिए स्वामी दयानंद चिंता में डूबे थे । तभी सामने से हरदेव पत्थर वाला नामक एक उदार सज्जन जा रहे थे। उन्होंने स्वामी जी से पूछा कि आप कुछ चिंतित जान पड़ते हैं ? स्वामी जी ने सारा प्रकरण बताया। हरदेव पत्थर वाला ने दो रुपए प्रति महीने का इंतजाम स्वामी जी के लिए कर दिया। यह प्रतिदिन चार सेर दूध खरीदने के लिए पर्याप्त धनराशि थी। इसी की गणना करके अखिलानंद सरस्वती जी ने 1875 के 5100 रुपए का मूल्य आज 2024 में 35 लाख रुपए निर्धारित किया। ‘अल्लाहरक्खाह रहमतुल्लाह सोने वाला’ शुद्ध हृदय से आर्य समाज का प्रशंसक था । इस तरह आर्य समाज की स्थापना एक शुद्ध हृदय सर्वोच्च दानदाता ‘अल्लाहरक्खा रहमतुल्लाह सोने वाला’ के शीर्ष दान से हुई। जीवन में मनुष्यतावादी दृष्टिकोण और सत्य के प्रचार और प्रचार के प्रति दृढ़ता स्थापित करने से ही हमें सफलता मिल सकती है, स्वामी अखिलानंद सरस्वती ने श्रोताओं से निवेदन किया।
जीवन में दान का विशेष महत्व होता है। स्वामी अखिलानंद जी ने महाभारत काल में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद के कुछ अंश श्रोताओं के सामने रखे। कहा कि कथा तो प्रसिद्ध है। पांडव प्यासे थे। सरोवर के पास जल पीने के लिए गए। यक्ष ने कहा कि पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, फिर पानी पीना। सब ने जल्दबाजी में पहले पानी पिया और बेहोश हो गए। केवल युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिया।
यक्ष के अनेक प्रश्नों में से एक प्रश्न यह था कि मृत्यु के बाद मरने वाले का मित्र कौन होता है ? युधिष्ठिर ने यक्ष को उत्तर दिया था कि केवल दान ही मृतक का एकमात्र मित्र होता है। अपने जीवन काल में जिसने जो दान किया है, उसका फल उसे अवश्य मिलता है। वह मृत्यु के बाद भी उसके साथ-साथ चलता है। इसी बात को राजा भर्तृहरि के वैराग्य शतक के एक श्लोक के द्वारा स्वामी अखिलानंद जी ने प्रबुद्ध श्रोताओं के सम्मुख रखा और बताया कि मृत्यु के बाद धन तो धरा पर धरा रह जाएगा, जितने पशु हैं वह सब पशुशाला में बॅंधे रहेंगे, मृत्यु के बाद मृतक के साथ उसकी पत्नी केवल घर के द्वार तक आएगी, मित्र-संबंधी आदि बस शमशान तक जाकर साथ निभाएंगे; लेकिन जब मृतक की देह चिता में जल जाएगी, तब उसके बाद भी उसके साथ जो जाएगा, वह केवल धर्म ही जाएगा।
जिसने धर्म के अनुसार आचरण किया है, उसी का जीवन सार्थक और सफल होता है।
महाराज श्री के उपदेशों से पूर्व उधम सिंह जी शास्त्री ने मनमोहक भजन प्रस्तुत किये। आपके बाएं हाथ पर बाजा (हारमोनियम) रहता है, जिसे आप बजाने में सिद्ध हस्त है। मधुर गंभीर आवाज है। कविवर नत्था सिंह जी का एक भजन आपने सबको सुनाया। इसके बोल हैं:
जब जीवन खत्म हुआ तब, जीने का ढंग आया
एक कवि के भजन के यह बोल भी बड़े अच्छे हैं:
सखि मैं प्रीतम के घर जाऊं
कविवर प्रेमी जी के एक भजन के यह बोल भी अत्यंत प्रेरक हैं:
कभी नहीं सोचा तूने, बैठ के अकेले में
आर्य समाज के मंच पर जो भजन प्रस्तुत किए जाते हैं, वह निराकार परमात्मा को पाने की साधना से जुड़े हुए होते हैं। उनमें वैचारिकता होती है और वह श्रोताओं का रसमय मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें कुछ सोचने के लिए भी बाध्य करते हैं। उधम सिंह शास्त्री जी के भजन भी ऐसे ही रहे।
कार्यक्रम के अंत में आर्य समाज के पुरोहित बृजेश शास्त्री जी ने शांति पाठ के द्वारा कार्यक्रम का समापन किया। अपने ओजस्वी विचारों के साथ धन्यवाद देते हुए आर्य समाज पट्टी टोला के प्रधान श्री मुकेश आर्य ने समाज में आई हुई विकृतियों को दूर करने के लिए जनसमूह से साहसिक निर्णय लेने का आह्वान किया।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451