“बेटी के लिए उसके पिता “
आर्या के शब्द मैंने बस कविता का नाम दिया
मैंने पूछा – आर्या आपके लिए आपके डैडी क्या हैं
आर्या ने बोलना शुरू किया जिसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गई ।
मैं बीमार होती हूं ,
तो मेरे डैडी मुझे दवाई सी लगते हैं
मेरे चहरे की हंसी और,
स्माइल सी लगते हैं
वो घर से बाहर जाएं तो मुझे,
घर की दीवार और छत छोटी लगने लगती है
उनके बिना मेरी हर खुशी,
अधूरी सी लगती है
मेरे लिए वो मेरी
पूरी पढ़ाई बन जाते हैं
सपने मैं देखती , पूरे वो करते हैं
बात मेरी हो तो मेरे डैडी,
सारी दुनिया से लड़ सकते हैं
््््््
कभी खेल तो कभी खिलौने,
भी बन जाते हैं
मैं परेशान हो जाऊं
तो मेरा हौसला बन जाते हैं वो
मेरे डैडी मुझे हर बुरी नजर से बचाते हैं
नाम-आर्या शुक्ला
उम्र- आठ साल
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ