आर्टिस्ट महाबीर वर्मा
कला किसी की मोहताज नहीं होती। कलाकार कला का पुजारी एवं पारखी होता है। कला उसकी नेमत और इबादत हेाती है। जब कला किसी की नस-नस में समा कर उसका अभिन्न अंग बन जाती है तो वह कला उसे कलाकार के पहले पायदान पर पहुँचा देती है। इसी का साक्षात प्रमाण हैं भिवानी जिले के तोशाम कस्बे के निवासी आर्टिस्ट महाबीर वर्मा। आर्टिस्ट महाबीर वर्मा तोशाम शहर में ही नहीं आस-पास के क्षेत्र में भी ‘आर्टिस्ट गमले वाले’ के नाम से जाने जाते हैं। इन्हें बचपन में तालाब की मिट्टी से खिलौने बनाने का शौक चढ़ा तो हुनर भी दिन-ब-दिन निखरता गया। आज महाबीर ‘आर्टिस्ट’ क्ले माॅडलिंग के लिए दूर-दूर तक विख्यात हैं। अनेक प्रकार की मूर्तियां, मिट्टी के खिलौने मिट्टी को किसी भी रूप में ढालने की कला में सिद्धहस्त महाबीर ‘आर्टिस्ट’ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मिट्टी को विभिन्न आकृतियों में ढ़ाल देना उनका पलभर का काम है।
ये मिट्टी से विभिन्न प्रकार की सब्जियों के नमूने (तोरी, घीया, भिंडी, करेला, टमाटर, गाजर, मूली), विभिन्न फलों के नमूने (आम, सेब, केला, संतरा, नारियल), मिठाइयों के नमूने (बर्फी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन), विभिन्न पक्षियों के नमूने (कबूतर, चिड़िया, बाज) चाबी के छल्ले, खंजर, बैल गाड़ी, ऊँट गाड़ी, तिरंगा झंडा, विभिन्न धार्मिक स्थल, पहाड़, गदा, त्रिशूल आदि नमूने बच्चों को सिखाते हैं। हैरानी की बात यह है कि इन्होंने बिना कोई प्रशिक्षण प्राप्त किए यह कला अर्जित की है। इस कला में ये इतने पारंगत हो गए कि उनकी उंगलियां उनके इशारों पर नाचने लगी है। दैनिक जीवन में काम आने वाली कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे महाबीर ‘आर्टिस्ट’ न बना सके। यही कारण है कि इनकी कला को देखने के लिए दूर-दराज के गांवों से लोग इनकी इस कला को देखने के लिए आते हैं। महाबीर ‘आर्टिस्ट’ ने अपने घर में अनेक मिट्टी के खिलौने सजा रखे हैं।
महाबीर ‘आर्टिस्ट’ सीमेंट के गमले बनाने में भी सिद्धहस्त हैं। इनके हाथों से बने सीमेंट के गमलों की तोशाम व आस-पास के क्षेत्र में काफी मांग है। मूलतः इन्होंने सीमेंट के गमले बनाने के कार्य को ही अपना व्यवसाय बनाया हुआ है। किसी एक डिजाइन के गमले की बात होती तो महाबीर ‘आर्टिस्ट’ का नाम नहीं लिया जाता। महाबीर ‘आर्टिस्ट’ कमल की आकृति के, तिरंगे की आकृति के, दीपक की आकृति के, फूल-पत्तियों की आकृति के, सामान्य प्रकार के तथा लेटेस्ट डिजाइन के गमलों को पलभर में बना डालते हैं। इनकी कला को देखकर कोई भी दांतों तले उंगली दबाए बिना नहीं रह सकता। कला इनकी नस-नस में कूट-कूट कर भरी हुई है। इन्होंने अपनी साईकिल पर भी ‘वर्मा गमला स्टोर तोशाम’ तथा अपना फोन नम्बर लिखवा रखा है। ये आॅर्डर ही गमले तैयार करते हैं। खाली बचे समय में ये स्थानीय स्कूलों में बच्चों को मुफ्त में क्ले माॅडलिंग सिखाते हैं।
आपको बता दें कि महाबीर आर्टिस्ट ने प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई मुहिम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ का प्रचार करने के लिए एक अनूठी पहल की है। जो लड़की खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतकर लाती है तो ये उसे उच्च क्वालिटी का गमला भेंट करते हैं। साथ ही भ्रूणहत्या का संकल्प लेने वाली महिलाओं को भी ये उच्च क्वालिटी का गमला भेंट करते हैं।
महाबीर आर्टिस्ट तोशाम के विभिन्न स्कूलों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य है अपनी कला को जीवित रखना क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट के आ जाने से यह कला अपना अस्तित्व खोती जा रही है। महाबीर आर्टिस्ट को उनकी कला के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। तोशाम में डाॅ0 भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य पर नवनिर्वाचित पार्षद भोलू ने उन्हें स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया था तथा गांव खानक में जिम्नास्टिक स्पर्धा के समापन पर कुम्हार समुदाय के लोगों ने इक्कीस सौ रूपये की माला पहना कर सम्मानित किया था। तोशाम के पूर्व चेयरमेन संतलाल भी इन्हें कला के लिए सम्मानित कर चुके हैं। 26 जनवरी, 2018 को वर्तमान एसडीएम ने इनकी कला से प्रभावित होकर इन्हें प्रशंसा-पत्र देकर इनका हौसला बढ़ाया।
महाबीर आर्टिस्ट गांव-गांव जाकर यह अलख जगाना चाहते हैं परंतु इसके लिए इन्हें कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल पा रही है। अगर सरकार इस ओर सुध ले तो यह ‘आर्टिस्ट’ बहुत से नए आर्टिस्ट तैयार कर सकता है। नहीं तो इनकी यह कला सिसक-सिसक कर यूं ही दम तोड़ देगी।
– विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
तोशाम जिला भिवानी