आरक्षण की राह और चुनौतिया
संविधान सभा से लेकर संसद तक आरक्षण एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है जो हमेशा विवादों के घेरे में रहा है। क्योंकि इससे सरकारी संस्थाओं की गुणवत्ता तो प्रभावित होती ही है साथ ही जातिगत व्यवस्था के कारण वैसे लोगों को इसका लाभ मिल जाता है जो सक्षम है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो असक्षम होते हुए भी इस लाभ से वंचित रह जाते हैं इसलिए समय-समय पर इसे समाप्त करने की मांग की जाती रही है परंतु भारत जैसे देश जहां आज भी करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने पर मजबूर है ऐसी अवस्था में इसे समाप्त करना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है क्योंकि समाज की मुख्यधारा से कटे लोगों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने में आरक्षण बेहद अहम भूमिका अदा कर सकता है। कुल मिलाकर इसे एक आवश्यक बुराई कहा जा सकता है। ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा लाई गई आर्थिक आरक्षण की अवधारणा समाज के लिए मध्यम मार्ग सिद्ध होगी। इसे पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्ग पर भी लागू कर इसे और प्रासंगिक बनाया जा सकता है परंतु सरकार के लिए इसमें व्याप्त चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं होगा भारत जैसे बड़े देश में आर्थिक सर्वेक्षण कराना बड़ी चुनौती होगी इसके अतिरिक्त सरकार को संविधान संशोधन प्रक्रिया से भी गुजरना होगा जो काफी जटिल है।
रोहित राज मिश्रा
हिंदू छात्रावास इलाहाबाद विश्वविद्यालय