आयोजन नहीं ये किसी के.
कुत्ते भी अपनी गली में शेर बन जाते है,
मिले जो बागडोर, बंदर भी हल्दी की गांठ
पाकर बन बैठता है पंसारी.
बात स्वाद अदरख की, बंदर ने भी स्वीकारी
हार बंदर ने भी मानी,
खडे हुए खंबे, खडे हुए वाहन के पहिये को देख कुत्ते ने टांग उठा दी.
चीढ़ अपनी पहिये की गति से गति मिला दी.
रंग है काले भैंस के,छतरी देख छलांग लगा दी.
बच्चे को खेलते देख, गाय ने पगडण्डी छोड दी.
दिनभर चरगाहों में चरती, दोपहरी में छांव देख जुगाली भर ली,
घर के द्वार पर लिखे,,,शब्द कुत्तों से सावधान.
अपनी मंशा मालिक मालकिन ने स्पष्ट रख दी
ये देश..सुरक्षित हाथों में है,,,कहकर देश की विरासत की बांट लगा दी.
क्रोनी कैपिटलिज्म…
कसम से हर क्षेत्र,,,,उनके नाम चढा दी