Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Aug 2020 · 5 min read

आयुर्वेद को दवा माफियाओं से बचाना होगा।

आयुर्वेद को दवा माफियाओं से बचाना होगा।
(आयुर्वेद के नाम पर झूठे दावों, दवाइयों के जालसाजी आदि के लिए भारी जुर्माना का प्रावधान करना अत्यंत जरूरी है।)

—-प्रियंका सौरभ

आयुर्वेद में प्राकृतिक उपचार की हजारों वर्षों की परंपरा का मिश्रण है। आयुर्वेदिक चिकित्सा यानी घरेलू उपचार दुनिया की सबसे पुराना चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेदिक तरीका रोगी को चंगा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है, प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार की तुलना में स्वास्थ्यवर्धन पर अधिक महत्व दिया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ जीवन जीने की एक कला विज्ञान है। कोविद-19 महामारी के दौरान प्राकृतिक उपचार का ज्ञान पूरे विश्व में लाइमलाइट में आया है।

इसलिए विशेष रूप से विश्व बाजार में प्राकृतिक उपचार की मांग को पूरा करने के लिए आयुर्वेद को अच्छे तरीके से दुनिया के सामने रखने और सही जानकारी से पूर्ण करने की आवश्यकता है, प्राकृतिक चिकित्सा में कृत्रिम औषधियों का प्रयोग वर्जित माना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में विषैली औषधियों को शरीर के लिये अनावश्यक ही नहीं घातक भी समझा जाता है। प्रकृति चिकित्सक है दवा नहीं।

औषधि का काम रोग छुड़ाना नहीं है बल्कि यह वह सामग्री है जो प्रकृति के द्वारा मरम्त के काम में लगाई जाती है। इस लिये प्राकृतिक चिकित्सा में सप्राण खाद्य सामग्री ही औषधि हैं। बदलते हालत में फ़र्ज़ी कम्पनिया आज आयुर्वेद के नाम पर अपना कूड़ा-कर्कट लेकर बाज़ार में उतर गई है, जो आयुर्वेद के इतिहास को बदनाम कर रहे हैं, हमें इन सबसे बचने के जल्दी ही नए तरिके ढूंढने होंगे ताकि भारत की ये प्राचीन शिक्षा पद्धति अपने वर्चस्व को बनाये रखे।

आधुनिक सोच वैकल्पिक चिकित्सा खोज रही है। और यह अच्छा है, भारत पारंपरिक हर्बल दवाओं के निर्माता और निर्यातक के रूप में बहुत कुछ हासिल करने के लिए दुनिया की पहली पसंद के तौर पर खड़ा है। प्राकृतिक उपचार, पारंपरिक और वैकल्पिक दवाओं और जड़ी बूटियों के साथ दुनिया का बढ़ता आकर्षण भारत के लिए अच्छा है। अब ये देश भर के किसानों और कंपनियों के लिए आय का एक बड़ा स्रोत प्रदान बन सकते हैं।

भारत में उत्पादित हर्बल दवाओं की बहुत कम मात्रा में निर्यात किया जाता है, क्योंकि वे आयात करने वाले देशों द्वारा आवश्यक नियामक मानकों को पूरा नहीं करते हैं। फिर भी अपने मौजूदा स्तर पर, थोड़ा निर्यात के साथ, अनुमान है कि आयुर्वेद भारत में 30,000 करोड़ रुपये का उद्योग है। हाल के कोरोनिल ’विवाद ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को आयुर्वेद के उपयोग को प्रोत्साहित करने में भूमिका निभानी होगी।

आयुर्वेद भारत के लिए आय और निर्यात का एक बड़ा स्रोत हैं, हमें सफल होने के लिए एक आधुनिक नियामक प्रणाली की आवश्यकता होगी। आयुर्वेदिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना और इन दवाओं की प्रभावकारिता के बारे में दावों की सच्चाई की जाँच करना अहम कार्य है। अन्यथा आयुर्वेदिक दवाएं स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती हैं। ये खतरे मुख्य रूप से कई कारणों से उत्पन्न होते हैं, जैसे कि सभी पौधे खपत के लिए सुरक्षित नहीं हैं, राख और गैर-पौधे सामग्री का उपयोग, एलोपैथिक दवाओं का इलीगल प्रयोग वगैरह।

कुछ फ़र्ज़ी कम्पनिया आयुर्वेदिक दवा निर्माण में खतरनाक धातुओं को गैर कानूनी प्रयोग करती है। हाल ही में, अमेरिका के खाद्य और औषधि प्रशासन ने कुछ आयुर्वेदिक दवाओं के उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी थी क्योंकि उन्होंने आयुर्वेद के नाम पर एक दवा को लेड के खतरनाक स्तर से युक्त पाया।

ये सब बेईमान दवा निर्माता करते हैं। ये आयुर्वेदिक दवाओं में आमतौर पर स्टेरॉयड दवाओं को मिलाते हैं। कुछ स्टेरॉयड (ज्यादातर कॉर्टिकोस्टेरॉइड) परिसंचरण और सतर्कता में सुधार करके रोग कल्याण की झूठी भावना देते हैं।

ऐसी दवाएं संक्रमण की तरह है, वे अंतर्निहित बीमारी को तेज कर सकते हैं, लेकिन रोगी आयुर्वेद के नाम पर स्टेरॉयड लेता है, वह बेहतर महसूस करता है और इसे दवा के रूप में अपनाता है। मुम्बई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल के एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 40% आयुर्वेदिक दवाओं में स्टेरॉयड शामिल हैं।

जहरीले पौधों का अनियंत्रित उपयोग, भारी धातुओं की उपस्थिति, और एकमुश्त धोखाधड़ी (स्टेरॉयड जोड़ना) भारतीय चिकित्सा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है। बेईमान और लापरवाह निर्माता धोखा देकर मुनाफा कमाते हैं, लेकिन वास्तव में वो पूरे आयुर्वेद जगत की स्थिति को नुकसान पहुंचाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में समस्या और भी ज्यादा बदतर है। प्रयास करने के बाद हम भारत में स्थापित ब्रांडों और संदिग्ध लोगों के बीच अंतर करने में सक्षम हो सकते हैं, मगर यह विदेश में बहुत मुश्किल है।

आज आयुर्वेद के नियमन ,सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक हो गया है। अन्यथा भविष्य में आयुर्वेद खत्म हो जायेगा, हमें ये कोशिश करनी होगी कि आयुर्वेद के नाम पर लोग कचरा न बेचें। इसके लिए सुरक्षा प्रावधानों को लागू कर चिकित्सीय दावों की जाँच करना जरूरी है। आयुर्वेद के नाम पर झूठे दावों, दवाइयों के जालसाजी आदि के लिए भारी जुर्माना का प्रावधान करना अत्यंत जरूरी है।

वैसे 2003 में, भारत सरकार ने आयुर्वेदिक दवाओं की पहली आधिकारिक सूची प्रकाशित की, जिसे फार्माकोपिया कहा जाता है। किसी फार्माकोपिया का प्रकाशन किसी भी चिकित्सा प्रणाली को औपचारिक बनाने की दिशा में पहला कदम है। 2014 में, सरकार ने आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (सामूहिक रूप से आयुष कहा जाता है) के विनियमन को एक अलग नामकरण मंत्रालय में मिला दिया। 2017 में, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की स्थापना दिल्ली में प्रसिद्ध अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की तर्ज पर की गई थी। इसके अलावा हाल ही में, सरकार ने जन औषधि दुकानों में आयुर्वेदिक दवाओं को बेचने का फैसला किया है।

कोरोना के इस दौर में प्राकृतिक उपचारों, पारंपरिक तथा वैकल्पिक दवाओं एवं जड़ी-बूटियों की ओर झुकाव दुनिया भर में बढ़ता ही जा रहा है. यह झुकाव भारत के लिए एक अच्छा संकेत है. अगर ये मांग बढ़ती है तो ये दवाएं देशभर में किसानों और कंपनियों के लिए अच्छी आमदनी का स्रोत बन सकती हैं,

अगर आयुष और जड़ी-बूटियों की खेती को बढ़ावा,प्रचार,प्रसार करने के साथ अगर हम आयुर्वेदिक दवाओं के लिए एक कानूनी व्यवस्था बनाते हैं तो इस कदम से न केवल रोगियों की सुरक्षा होगी बल्कि आयुर्वेद को उपचार की एक सुरक्षित,जवाबदेही तथा कारगर व्यवस्था के रूप में भविष्य कि सबसे मजबूत और प्रभावी पद्धति के रूप में देख पाएंगे, बदलते दौर में ये एक ऐसी प्रणाली जिसमें भारत एक विश्व नेता हो सकता है।

— —-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 316 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अज्ञानी ज्ञानी हुए,
अज्ञानी ज्ञानी हुए,
sushil sarna
राम राज्य
राम राज्य
Shashi Mahajan
राधा की भक्ति
राधा की भक्ति
Dr. Upasana Pandey
अपना साया ही गर दुश्मन बना जब यहां,
अपना साया ही गर दुश्मन बना जब यहां,
ओनिका सेतिया 'अनु '
संस्कार
संस्कार
Rituraj shivem verma
अगर ठोकर लगे तो क्या, संभलना है तुझे
अगर ठोकर लगे तो क्या, संभलना है तुझे
Dr Archana Gupta
वैनिटी बैग
वैनिटी बैग
Awadhesh Singh
सड़कों पर दौड़ रही है मोटर साइकिलें, अनगिनत कार।
सड़कों पर दौड़ रही है मोटर साइकिलें, अनगिनत कार।
Tushar Jagawat
दोहा- सरस्वती
दोहा- सरस्वती
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ब्यूटी विद ब्रेन
ब्यूटी विद ब्रेन
Shekhar Chandra Mitra
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
गिराता और को हँसकर गिरेगा वो यहाँ रोकर
गिराता और को हँसकर गिरेगा वो यहाँ रोकर
आर.एस. 'प्रीतम'
प्यार है नही
प्यार है नही
SHAMA PARVEEN
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
Keshav kishor Kumar
-        🇮🇳--हमारा ध्वज --🇮🇳
- 🇮🇳--हमारा ध्वज --🇮🇳
Mahima shukla
"खुश रहने के तरीके"
Dr. Kishan tandon kranti
शिक्षक सम्मान में क्या खेल चला
शिक्षक सम्मान में क्या खेल चला
gurudeenverma198
*** यादों का क्रंदन ***
*** यादों का क्रंदन ***
Dr Manju Saini
इक सांस तेरी, इक सांस मेरी,
इक सांस तेरी, इक सांस मेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
लोग कहते ही दो दिन की है ,
लोग कहते ही दो दिन की है ,
Sumer sinh
2950.*पूर्णिका*
2950.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दिल में हिन्दुस्तान रखना आता है
दिल में हिन्दुस्तान रखना आता है
नूरफातिमा खातून नूरी
अक्षर ज्ञानी ही, कट्टर बनता है।
अक्षर ज्ञानी ही, कट्टर बनता है।
नेताम आर सी
उलझ गई है दुनियां सारी
उलझ गई है दुनियां सारी
Sonam Puneet Dubey
*रंगों का ज्ञान*
*रंगों का ज्ञान*
Dushyant Kumar
నా గ్రామం..
నా గ్రామం..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
मेरे चेहरे से मेरे किरदार का पता नहीं चलता और मेरी बातों से
मेरे चेहरे से मेरे किरदार का पता नहीं चलता और मेरी बातों से
Ravi Betulwala
*संस्मरण*
*संस्मरण*
Ravi Prakash
स
*प्रणय*
मुक्तक
मुक्तक
प्रीतम श्रावस्तवी
Loading...