आबो-हवा बदल रही है आज शहर में ।
आबो-हवा बदल रही है आज शहर में ।
ये कैसी हवा चल रही है आज शहर में ।।
कोई किसी को अब यहाँ पहचानता नहीं।
सबकी नजर बदल रही है आज शहर में ।।
शोहरत का नशा है या सियासत का है असर ।
नफरत की हवा बह रही है आज शहर में ।।
हिन्दु हो मुसलमान हो या सिक्ख ईसाई।
सबकी हवा निकल रही है आज शहर में ।।
चारो तरफ अफ़वाहों का बाजार गर्म है।
कुछ फुसफुसा के कह रही है आज शहर में ।।
क्या दिन थे जब चौराहों पे लगते थे ठहाके ।
अब चीख बस निकल रहीं हैं आज शहर में ।।
“कश्यप” पकड़ के रखना है इन्सानियत की डोर।
हाथों से जो फिसल रही है आज शहर में ।।
प्रभु नाथ चतुर्वेदी “कश्यप”