आबरू
आबरू पर पानी फिरता ,फिर दोषी सारा संसार कहे।
मौन खड़े हैं सारे मुलाजिम और नहीं कुछ भी सरकार कहे।
क्या लड़की की इस बुरी दशा को ,दुनिया का अंधकार कहें।
या कलयुग की घनघोर दशा और मानवता का चित्कार कहें।
दानव रूपी भेड़ियों के ,ज्यादतियों का हाहाकार कहें।
या सरकारी नियम कानून का ,होता बंटाधार
कहें।
क्या कहें हम इस बुरी दशा को कोई बतला सकता है क्या?
इसे समय का उतार कहें या मानवता शर्मसार कहें।
समझ नही आता है अब ,कि कैसे करुण पुकार कहें।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी