आप अपने आप से पूछिये?
मनुष्य अपने कर्म को महान नही बनाता है।यह प्रशन आप अपनी आत्मा से पूछ सकते हो?कि आप जहां पर खड़े हो !वह स्थान आपके लिए कितना सुखमय है।बस! आपका मन फिर भी संतुष्ट नही होगा। क्योंकि? आपने केवल अपने ही हित का ध्यान रखा है! आपने कभी भी अपनी आत्मा से नहीं पूछा, कि आप ! अपने से ज्यादा किससे प्रेम करते हो? जिसने आपको महान बनाया,उसको आप एक क्षण में भूल जाते हो। क्या यही मानवता है? क्या यही मनुष्य का धर्म है?आप अपने आप से पूछिए! क्या आप इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हो! आपको जरा सा दुख का अनुभव हुआ,कि आप अपना आपा खो देते हैं।आप इस समाज को मनुष्य होने का परिचय तो दीजिए!