आपात स्थिति में रक्तदान के लिए आमंत्रण देने हेतु सोशल मीडिया
#रोपा_पौधा_बन_गया_वृक्षपौधा
■ रक्तदान की दिशा में नवाचार का एक दशक
★ एक पहल जो हुई सफल
【प्रणय प्रभात】
आपात स्थिति में रक्तदान के लिए आमंत्रण देने हेतु सोशल मीडिया (फेसबुक और व्हाट्सअप) के उपयोग का विचार 10 साल पूर्व आज 30 अप्रेल के ही दिन मेरे मानस में उपजा। मैंने युवा नेता व समाजसेवी यशप्रताप सिंह चौहान के सहयोग से फेसबुक पर “ब्लड डोनेटर्स श्योपुर” नामक एक पेज़ बनाया। उद्देश्य था किसी पीड़ित की मदद के लिए सम्बद्ध समूह के रक्तदानी को तुरंत ज़िला अस्पताल पहुंचने के लिए सूचित करना। साथ ही रक्तदान के बाद इस मदद को प्रचारित-प्रसारित कर रक्तदाता को प्रोत्साहित व औरों को प्रेरित करना।
दरअसल, एक पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मुझे लगा कि मेरी कर्मभूनि को रक्तदान-जीवनदान के क्षेत्र में एक अलग तरह की पहल की जरूरत है। जो रक्तदाताओं के उस नए संगठन के निर्माण के रूप में हो, जो आपात परिस्थितियों में रक्तदान के लिए हमेशा तैयार रहें तथा इस आशय की घोषणा करते हुए अपने संपर्क सूत्र उपलब्ध कराऐं। जिसके आधार पर उन्हें रक्तदान के लिए तुरंत बुलवाया जा सके। सोच थी कि यह रक्तदाता सतत आयोजित शिविर में रक्तदान न करते हुए अपने अमूल्य रक्त को तात्कालिक मदद के लिए बचा कर रखें। यह सोच तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप थी, क्योंकि तब बड़े पैमाने पर रक्त संरक्षण की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में संग्रहित रक्त के नष्ट होने का जोख़िम बना हुआ था। ऐसे में यही उचित था कि रक्त की आवश्यकता पडऩे पर पीडि़त के परिजन सोशल मीडिया पर हमारे संगठन से संपर्क करें और संगठन रक्तदाताओं से। इसके बाद जो भी सम्बन्धित समूह का रक्तदाता सहज उपलब्ध हो, अस्पताल जाकर रक्तदान कर दे।
यक़ीन था कि इससे पीडि़त को तात्कालिक मदद मिलेगी और रक्त का सदुपयोग भी हो सकेगा। ऐसा होने के बाद न तो दान किया गया रक्त बिकेगा ओर ना ही व्यर्थ में नष्ट किया जाएगा। जिसके प्रमाण 2013 से पहले मिलते रहे रहते थे। पीडि़त मानवता की मदद में रूचि रखने वाले 25 रक्तदाताओं की सहमति मिलते ही इस पहल का आगाज कर दिया जाना तय हुआ। जो मात्र एक सप्ताह में अमल में आ गया। मुझे पता था कि नगरी ही नहीं क्षेत्र भर में रक्तदानियों और सेवाभावियों की कोई कमी नहीं। ज़रूरत एक उचित मंच की है, जो पीड़ितों व दानियों के बीच पुल का काम कर सके। वो भी सभी के सहयोग, समर्पण व ऊर्जा से।
अपनी तरह के इस नवाचार को त्वरित सफलता मिली। देखते ही देखते सैकड़ों रक्तदानी हमारे समूह का अंग बने। जिनके विवरण पर आधारित एक कंप्यूटराइज़्ड बुकलेट तैयार की गई। जिसकी एक प्रति ज़िला अस्पताल की रक्त-संग्रह इकाई व एक प्रति “रक्तदान जागरूकता अभियान” के सूत्रधार स्व. मुकेश गुप्ता स्मृति सेवा न्यास को सौंपी गई। एक कॉल पर रक्तदानी का पूरे उत्साह से आना और तात्कालिक रक्तदान करना एक परिपाटी बनता चला गया। इस पहल में अगले सहयोगी के रूप में युवा अभिभाषक व समाजसेवी नकुल जैन को सम्मिलित किया गया। जिन्हें बाद में इस पेज़ के सुचारू संचालन की ज़िम्मेदारी दी गई।
इस समन्वयी अभियान के साथ समूह की भूमिका रक्तदान-अभियान में एक सहयोगी संगठन के तौर पर भी पूर्ववत बनी रही। बाद में रक्तदान के लिए सोशल मीडिया का एक माध्यम के रूप में उपयोग करना परम्परा बनता चला गया। जिसका अनुकरण कुछ ही समय बाद ग्वालियर, सवाई माधोपुर, कोटा और बारां सहित अन्य नगरों के ऊर्जावान व सजग साथियों ने किया। जो आज और आगे निकल चुके हैं। आज तमाम उत्साही युवा व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से यह कार्य दिन-रात कर रहे हैं। एक दशक की अवधि में अपने द्वारा रोपित पौधे को छतनार वृक्ष बनते देखना मेरे लिए अत्यंत सुखद व संतोषप्रद है। चाह न श्रेय लेने की है, न किसी की स्मृति में बने रहने की। मन्तव्य केवल इतना बताने का है कि नेक नीयत से एक उपयोगी पहल बिना किसी साधन-संसाधन या बड़ी लागत के भी की जा सकती है। बशर्ते दिल में एक जज़्बा हो और सरोकारों की समझ के साथ उनके प्रति समर्पण व उत्साह की भावना। जो आपको नाम, पहचान और प्रतिष्ठा दे या न दे, आत्मीय आनंद अवश्य देगी और आप संतोष कर पाएंगे कि एक मानव के रूप में आपने बहुत कुछ न कर पाने के बावजूद कुछ तो किया, जो आपके राम जी को भाया। जय राम जी की।।
★संपादक★
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