आपसी समझ
आपसी समझ
“हलो समधन जी, बधाई हो। एक बड़ी गुड न्यूज है ?”
“वाओ गुड न्यूज ! जल्दी बताइए।”
“हमारा प्रमोशन होने वाला है। मैं दादी और आप नानी बनने वाली हैं।”
“बधाई हो, बहुत-बहुत बधाई हो आप सबको भी। समधन जी, मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितनी खुशी हो रही है। मैं इनको अभी बताती हूँ जल्दी ही गुड़िया को मायके लिवा लाएँ। परंपरा के मुताबिक पहली शिशु का जन्म ननिहाल में होना चाहिए न।”
“क्या समधन जी, आप भी किस दुनिया में रहती हैं। हम प्रगतिशील लोग हैं। आप खुद नौकरीपेशा हैं। आपकी बेटी यानी हमारी बहु खुद नौकरी कर रही है। आप तो जानती ही है कि हमारा घर उसके ऑफिस से वॉकिंग डिस्टेंस पर है। आपके घर से उसकी ऑफिस बहुत दूर होगी। ऐसी स्थिति में रोज-रोज उसकी ज्यादा ट्रेवलिंग ठीक नहीं होगी।”
“हाँ समधन जी। बात तो आपकी सौ टका सही है परंतु लोग…।”
“लोग… समधन जी जब समस्या आएगी, तो समाधान हमें ही करनी होगी। लोगों का क्या है ? हमें उनकी नहीं, अपने बच्चों की परवाह करनी चाहिए। गुड़िया का अभी तो तीसरा ही महीना चल रहा है। डिलीवरी में बहुत समय बचा है। आप तो ठहरीं नौकरीपेशा, बिजी रहती हैं दिनभर। मैं हाउसवाइफ हूँ, अपनी बहू की बेहतर देखभाल कर सकती हूँ। आपको जब भी फुरसत हो, सुबह-शाम आकर अपनी बेटी से मिल लिया करिए।”
“आपकी बात तो शत-प्रतिशत सच है समधन जी। वैसे भी पिछले दो-ढाई साल में वह आपसे ऐसे घुलमिल गई है मानो वर्षों की जान-पहचान हो। मुझे पूरा विश्वास है कि आप गुड़िया की मुझसे बेहतर देखभाल करेंगी।”
“ऐसा कहकर आप अपनी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकतीं, मैं अभी से कहे देती हूँ। जिसकी दो-दो माँएँ हों, उसे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए।”
“बिल्कुल। आज शाम को हम दोनों आ रहे हैं आपके घर मुँह मीठा करने। मिठाई तैयार रखिएगा। फोन रखती हूँ अब। अब उन्हें ये गुडन्यूज तो दे दूँ कि उनके बुढ़ापे के दिन आ गए। हा… हा… हा…।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़