आपबीती भाग-१
आप बीती जानने से पहले ‘आप’ के बारे में जानना जरुरी है क्यूँकि बिना ‘आप’ को जाने उसकी आप बीती समझ ही नहीआएगी तो आप यानी मैं रणजीत कुमार हूँ और इस आपबीती के लिए इतना जानना जरूरी है कि मैं अपने प्यारे भारत से दूर एक यूरोपियन देश जर्मनी के बान शहर में रहता हूँ। मैं पढ़ाई करता हूँ और साथ-साथ पार्ट-टाइम नौकरी भी करता हूँ।
तो कहानी यहाँ से शुरू होती है की मैं २७ दिसम्बर को नौकरी से वापस अपने रूम आ रहा था आधा रास्ता तय कर चुका था और आधा मुझे मेट्रो से तय करना था चुकी मैं बॉन मेन शहर से थोड़ी दूर एक जगह पर रहता हूँ तो मुझे बॉन मेट्रो स्टेशन से मेट्रो लेनी थी मैं बैठा था स्टेशन पर क्यूँकि अभी गाड़ी आने में १३ मिनट बाक़ी थी। थोड़ी देर बाद दो लोग और आए एक भारतीय था और एक अफ़्रीकन लड़की थी। वो पास वाले कुर्सी पर आके बैठ गये। हमने बात करना शुरू ही किया था की एक जर्मन लड़की आयी और इंडियन लड़के से कुछ पूछने लगी मैंने ध्यान नही दिया। लड़के ने कुछ जवाब दिया और वो चली गयी। फिर हम पहले की तरह नॉर्मल हो गये। अचानक से दो मिनट बाद वो लड़की आयी और लगभग चिल्लाते हुए बोलने लगी- चले जाओ यहाँ से अपने देश में ये हमारा देश है तुम लोग हमारे देश को ख़राब कर रहे हो। बारहाल मैंने कुछ बहस करी और वो लड़की चुप हो गयी इतने में मेट्रो आ गयी और सब लोग गाड़ी में बैठ गए इत्तफ़ाक़ देखिए की वो लड़की मेरे सामने वाली ही सीट पर बैठी थी। मैं थोड़ा घबराया क्यूँकि मैंने दोस्तों से सुन रखा है की कुछ दिन पहले ही पास के स्टेट में एक आदमी ने ऐसे ही बड़बड़ाते हुए कुछ विदेशी लोगों पर गोलियाँ चला दी थी। मैं सोचा कही पीछा तो नही कर रहीं है। फिर मैंने मन-ही-मन सोचा चलो जो होगा सो होगा । थोड़ी देर शांत रहने के बाद मुझसे रहा नही गया तो मैंने उससे पूछ ही लिया- क्या आप मेरा पीछा कर रही हो। उसने ना में सिर हिलाया।फिर मैंने पूछा आप ग़ुस्सा क्यूँ हो रही थी। क्या आप भारतीयों को पसंद नही करती? उसने फिर कुछ नही बोला। मैंने फिर बोला अगर आपको भारतीय लोगों से या अन्य विदेशी व्यक्तियों से परेशानी है तो ये सवाल आप अपने सरकार से पूछ सकती हैं। हम कोई अवैधानिक तरीक़े से थोड़ी आए हैं हमारे पास वीज़ा है। काम करके सरकार को टैक्स देते हैं। तो आपको ये सवाल अपने सरकार से पूछना चाहिए कि वो हमें वीज़ा ही ना दे। उसने मुझे ध्यान से देखा और बोला कि हमें किसी से परेशानी नही है बाहर के लोग भी टैक्स देकर देश की प्रगति में साथ देते हैं लेकिन मैं आज कल जो घटनायें भारत में या बाहर भी हो रही है उससे मैं दुखी हूँ। मैंने पूछ लिया की कौन सी घटनाओं से आप परेशान हैं। उसने जो बताया उसे सुनकर मैं हैरान रह गया। उसने कहा- अभी क्रिसमस पर भारत में कुछ लोगों ने ईसाइयों को टार्गेट किया। उन्हें अपना त्योहार ठीक से नही मनाने दिया और आए दिन कुछ न कुछ साम्प्रदायिक घटनायें वहाँ होती रहती है। जिसे देख और सुनकर मेरे मन में एक विचार बन गया है कि जब वो लोग ढंग से रहने नही दे सकते हो फिर वो लोग भी हमारे देश में क्यू रहे। पहले तो मैं सोच में पड़ गया की पहले इन घटनाओं का असर मुसलिम देशों में रह रहे भारतीयों पर पड़ता था लेकिन अब यूरोपीय देशों में भी? फिर मैंने कहाँ की देखिए कुछ लोग ही इस तरह की हरकतें करते है इसलिए आप पूरे भारत के लोगों को इस प्रकार आप एक ही तराजु में नही माप सकते। हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है जो सिर्फ़ अभी कुछ गलत लोगों के हाथों में आ गया है जैसे इतिहास में आपका भी देश एक गलत आदमी के हाथ में गया था। हम तो पूरे विश्व के लोगों को अपना मानते हैं और जब वो भारत आते हैं तो बड़ी ही आदर पूर्वक उनकी स्वागत की जाती है। अगर विश्वास ना हो तो आप आएँ हम स्वागत करेंगे आपकी।मेरी बातों से वो थोड़ी मुस्कुरायी और धीरे से बोला- es tut mir sehr leid. मतलब मैं अपने हरकतों पर शर्मिन्दा हूँ।और आगे बोलीं की ऐसी घटनायें ही दो विचारों में झगड़े का कारण बनती है। अब सारी गिले शिकवे दूर हो चुके थे और फिर हम नोर्मल बात करने लगे जैसे मैंने पूछा आप क्या करती हो और ढेर सारी बातें और इन बातों ही बातों में मेरा स्टेशन आ गया फिर हमने एक दूसरे को बाय बोला और मैं मेट्रो से निकल गया। पर मेरे दिमाग़ में एक बात पूरी रात घूमती रही की कुछ मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरे राष्ट्र को और उसके नागरिकों को चाहे वो देश में हों या विदेश में हों शर्मिन्दा होना पड़ता है।
आख़िर क्यूँ करते हैं लोग ऐसा….. क्यूँ?????
और इसी सवाल के साथ मैं अपनी आपबीती ख़त्म करता हूँ यहाँ और भी मज़ेदार और हास्यास्पद घटनायें होती रहती है तो वो भी बताऊँगा अगले भाग में।
नमस्कार?