आपका नियामक कौन
सोच विचार मनन मंथन तर्क-वितर्क
मनुष्य के मन की प्रकृति होती है.
यह एक सतत प्रवाह है.
कोई इसे ताकत तो कोई
इसे कमजोरी बनाकर नुकसान उठा लो,
या फिर सहज सरल बनकर व्यवाहारिक हो जाओ.
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आप अपने शरीर के सारथी हो.
मन एक तुरंग.
मन से जुडी पंच-ज्ञान तथा कर्म इंद्रियों के मालिक.
एक स्वस्थ मन दूसरों का आकलन करता है.
फिर समझ उसके बाद गृहण.
अतः आप स्वयं के मालिक है.
दूसरे के कथन से कैसे विचलित हो सकते हैं.