आने दो कुँवार, खिलेगी सुनहरी धान
कम आ रहे हो ख़़्वाबों में आजकल,
शायद, पौष की लंबी रातों में आओगे।
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रूठे रहो यों ही, दो-चार महीने और,
ख़ुद ही एक रोज़ बातों-बातों में आओगे।
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आने दो कुँवार, खिलेगी सुनहरी धान,
छूने लहलहाती फसलें, मेरे खेतों में आओगे।
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ख़ोजी है, गुलाबी पसंदीदा बिंदी तुम्हारी,
अभी सौंपी है डाकिए को, जल्दी पाओगे।
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मिरे बारे में तहक़ीक़ात कम किया करो,
फिर गुमसुम भी रहती हो, रुसवा हो जाओगे।