आना धीरे धीरे
गीत
अहसासों की बस्ती मेरी, आना धीरे धीरे।
मोरपंख सा जीवन मेरा,पढ़ना धीरे धीरे।।
दर्द अपना कब कहती नदिया
सागर पाने को
तन-मन की यह आस पुरानी
जग में छाने को
खड़े किनारे सोच रहे हम, क्या यमुना के तीरे
मोरपंख सा जीवन मेरा, पढ़ना धीरे धीरे।।
ली उदासी शाम कर्ज़ में
दिन को भी ढोया
सूद वसूले महाजन मन का
तन को भी खोया
अपनी यादें किश्त किश्त हैं, ये संबल दीवारें
मोरपंख सा जीवन मेरा, पढ़ना धीरे धीरे।।
सूर्यकांत द्विवेदी