आनंद की खोज। ~ रविकेश झा
आनंद की खोज।
शरीर भावना और विचार दोनों से ऊपर उठना होगा तभी हम पूर्ण ज्ञान को उपलब्ध होंगे कल्पना से परे जाना होगा। अभी हम किसी को गुरु मानते हैं कोई सदगुरु हो सकता है लेकिन जब हम ध्यान में प्रवेश करते हैं फिर हमें शून्य जो अंतिम छोर है जहां न कोई दृश्य न कल्पना न कोई विचार न कोई भोग का इच्छा बचता है। हमें तभी शून्य का दर्शन प्राप्त होगा जब हम भीड़ से हटने के लिए स्वयं को स्वीकार करेंगे न की क्रोध घृणा त्याग, हमें धैर्य रखना होगा हमें सुनना होगा बोलने से अधिक, तभी हम पूर्ण शांति को उपलब्ध होंगे और जीवन मृत्यु से परे जाने में पूर्ण आनंद महसूस करेंगे। बस हमें साहस दिखाना होगा एक साहस ही है हमारे पास जिसके मदद से हम स्वयं को पूर्ण जान सकते हैं और अपने जीवन के प्रति उत्सुक हों सकते हैं एक ऐसे दृष्टा जिसे हम खोज नहीं पाए अभी तक सोचो जब देख लोगे फिर कितना आनंदित हो जाओगे। जो दृष्टा हैं जिन्होंने पूरे ब्रह्मांड को निर्माण किए हैं जिसे हम ईश्वर की संज्ञा देते हैं हमें देखने के लिए उत्सुक होना चाहिए। गरीब अगर नहीं जान पा रहा है कोई बात नहीं उन्हें अभी तनाव है दुख है अभी जीवन भी नहीं देखे हैं ठीक से उनसे उम्मीद करना ठीक नहीं उन्हें पहले बुनियादी सुविधाएं इकट्ठा करना होगा तभी वह बाहरी सुख से परे के बारे में पूर्ण सोच सकते हैं, अभी उन्हे बहुत कामना को पूर्ण करना है सपना देख कर रखें है उन्हें पूरा करना है।
लेकिन जो अमीर है जिन्हें धन उतना है जिससे जीवन ठीक चल सकता है उन्हें सोचना चाहिए उनको जानना चाहिए अभी पद धन नाम और प्रतिष्ठा में जी रहे हैं उन्हे स्वयं को पूर्ण विकसित करने के बारे में सोचना चाहिए आंतरिक ज्ञान के बारे में सोचना चाहिए बाहर जो देख रहे हैं क्या वह पूर्ण सत्य है नहीं हम देखते कहां है हम आंख खोलते कहां है हम मन के विभिन्न हिस्सों में अटके है मन के हिसाब से काम करते हैं हम हमें पाता नही जीवन को कैसे जीना है। उन्हें स्वयं के परिवर्तन के बारे में सोचना चाहिए ताकि पूर्ण शांति हो। हम वह नहीं जो हम मान लेते हैं हम कुछ और भी है हमें बस पता नहीं हम खोज नहीं किए हैं अभी इसीलिए हमें बाहर कुछ मानना पड़ता है हम ऊपर देखते हैं तो चौंकते नहीं आकाश को देख कर हम सोच लेते हैं ऊपर तो बैठा ही है वह बना दिए हैं लेकिन ये नहीं सोचते उन्हें कौन बनाया है आखिर बनाता कौन है कामना कैसे होता है प्रभु को कामना बड़ा या प्रभु आखिर कौन है जो हमें कभी सुख फिर दुख में परिवर्तन कर देता है हम सब कोई ईश्वर की धारण मन में पकड़ लिए हैं। और मन में कुछ चलता रहता है ऐसे नहीं चलेगा लौट के आना होगा अपने भीतर मैं तो ये कहूंगा पहले जिज्ञासा तो हो, कुछ जानने के लिए इच्छुक तो हों, इसीलिए पहले स्वयं के अंदर आओ और स्वयं को जान लो बाकी सब जान लोगे कोई प्रश्न नहीं बचता कोई उत्तर भी नहीं बचता हम दोहराते नहीं है मन को शून्य कर लेते हैं हम शून्य हो जाते हैं ऐसा स्थिति आता है जब कोई विचार भावना या अन्य इच्छा नहीं रहता सब कुछ मिल जाता है।
हमारे मन में बहुत प्रश्न उठते हैं ये ब्लैकहोल ये अंतरिक्ष ये ब्रह्मांड कैसे लेकिन हम इसे बाहर से जानने में लगे हैं इसीलिए पकड़ में नहीं आता हमें शांत होकर स्वयं के अंदर आना होगा अभी समय है अभी ऊर्जा है जी लो थोड़ा सार्थक कार्य कर को जानने का मानने को मैं कहता भी नहीं जानना ही होगा मानने का कोई मौका ही नहीं आए ऐसा स्वयं को विकसित करना होगा। जब आपका ऊर्जा एकत्रित होगा एक होगा फिर आप अनेक कार्य में रुचि ले सकते हैं जीवन को कई रंग में रंग सकते हैं खूबसूरत बना सकते हैं। जीवन बहुत खूबसूरत हैं लेकिन हम जटिलता से भर देते हैं तनाव दुख से ग्राषित रहते हैं लोग हमें अच्छा नहीं लगता घृणा मेरे हिसाब से हो जैसा मैं चाहु नहीं तो मैं घृणा क्रोध से भर जाऊंगा ऐसे ही हो रहा है देश में लोग भटक रहे हैं फिर भी समझ नहीं रहे ठोकर मिलने के बाद भी मन नहीं बदलता क्योंकि हम बेशर्म हो गए हैं मन हमारा अस्तित्व से भिन्न बात करता है कैसे चलेगा ऐसे में हमें ध्यान की पूर्ण आवश्कता है हमें भटकना तो होगा लेकिन होश के साथ। जीवन में मधुरता लाना होगा संबध में तभी पूर्ण प्रेम बढ़ेगी जब हम ध्यान में प्रवेश करेंगे। हम सब कुछ कर सकते हैं लेकिन हम पहले सोच लेते हैं पहले कल्पना कर लेते हैं यह बहुत बड़ा नेटवर्क है ये हमसे नहीं होगा आप सब कुछ कर सकते हैं लेकिन आप करना नहीं चाहते कल्पना में ऊर्जा को लगा देते हैं वही ऊर्जा हम कर्म के प्रति रखें और होश रहे फिर है कार्य संभव है लेकिन हमें ऊर्जा का पता कहां हमें अभी स्वयं का पता नहीं हम कहां अटके हुए हैं। जानना होगा जागना होगा तभी आप पूर्ण संतुष्ट और परमानंद को उपलब्ध होंगे जागना तो होगा लेकिन याद रहे यदि आप जानने के मार्ग पर चल रहे हैं फिर मानना नहीं है पूर्ण जानने का जिज्ञासा होना चाहिए तभी हम जागृत दिशा में चलते रहेंगे। ध्यान का अभ्यास करें प्रतिदिन और जीवन में जानने की ओर बढ़े यदि पूर्ण जानना है तो नहीं तो घर में रहे ठंडा है भोग विलास में समय काटिए। मुख्य चक्र है काम का और अंतिम छोर है राम का लेकिन कैसे पता चलेगा इसीलिए हमें ध्यान में उतरना चाहिए तभी हम पूर्ण आनंद होंगे और जीवन के जटिलता से बाहर निकल पाएंगे।
हम कुछ मान लेते हैं स्वयं को, जो बाहरी कड़ियां से स्वयं को जोड़ लेते हैं यह मेरा नाम पद प्रतिष्ठा धन, लेकिन अंत में शून्य में ही उतरना पड़ता है। फिर हम क्यों भीड़ का हिस्सा बनते हैं क्योंकि हमें पता ही नहीं है कि जीवन कैसे जिया जाता है कैसे प्रेम में उतरना पड़ता है कुछ पता नहीं बस धारणा को हम पकड़ लेते हैं और सोचते हैं हम यही है आपका मन आपको उठने नहीं देगा पृथ्वी तत्व में हम फंस जाते हैं कोमलता हमसे नहीं हो पाता, हम ज्ञान इकट्ठा करने लगते हैं ताकि हम अहंकार पाल सकें कुछ उधार का नाम बना लिया जाए, कैसे पता चलेगा कि जीवन का क्या उद्देश्य है हम प्रतिदिन ख़ोज करते हैं क्या मिला कुछ नहीं इसीलिए अब खोज बंद करना होगा आंख को अंदर लाना होगा कुछ नहीं करना है स्वयं को बस स्वीकार कर लेना है जो होता है होने देना है होश के साथ, लेकिन हम बाहर ख़ोज करते हैं की कुछ मिल जाए कुछ हाथ लग जाए कुछ नहीं आता हाथ में जैसे हम पानी को लेकर मुठ्ठी बंद करें लेकिन हम क्षण भर के सुख के लिए दुःख को ख़ोज लेते हैं। हमें जीवन का कुछ पता नहीं चलता ये धरती सूर्य चंद्रमा सब अपना काम कर रहे हैं लेकिन हम बाहर के तरफ़ दौर लगाते हैं ताकि कुछ ज्ञान हाथ लग जाए ताकि हम ज्ञानी हों सकें कैसे कौन यहां ज्ञानी बनेगा ये तो पहले जान लो। लेकिन नहीं हमें भीड़ में फंसना भी है क्षण भर का सुख भी चाहिए फिर दुख तो हाथ लगेगा हो यदि आपके मुताबिक न हुआ तो, क्रोध भी आएगा। लेकिन हमें क्या है हम आदि हो चुके हैं दुख सुख को हम साथ लेकर चलते हैं ये बात हमें पता होना चाहिए जब ही हक सुख का कामना करते हैं फिर हमें दुख को भी अपने साथ रख लेना होगा क्योंकि भौतिक शरीर तो खत्म होगा आप दुख में आ सकते हैं। इसीलिए हमें भौतिक से परे सोचना होगा स्वयं को टटोलना होगा ताकि शून्य का पता चल पाए। तभी हम पूर्ण संतुष्ट और परमानंद को उपलब्ध होंगे जो सबके बस की बात नहीं इसके लिए हिम्मत साहस की आवश्कता होती है। हमें खुश होना चाहिए कि हमें मनुष्य का जीवन मिला है जो बहुत योनियों में भटकने के बाद मिलता है भगवान बुद्ध ने भी कहां है कि मनुष्य का जीवन बहुत कठिन से मिलता है कभी पंक्षी कभी पौधा कभी पत्थर कभी फल फूल लेकिन हमें इस सब बात से क्या है हम भोग फिर कैसे करेंगे।
लेकिन हम मान लेते हैं की रूपांतरण कर लेंगे लेकिन मन फिर क्यों बदल जाता है हम जो सोचते हैं वह नहीं हो पाता फिर से हम भोग में आ जाते हैं स्त्री या अन्य सुख में फंस जाते हैं कैसे हम चेतना तक पहुंचे बीच में कामना क्या क्या होगा। बात को समझना होगा आप जो सोचते हैं वह चेतन मन का हिस्सा है और मन नीचे है जिसे अभी हमें बोध नहीं हुआ, हम सोचते तो है लेकिन अचेतन और अवचेतन मन अपना काम करता रहता है आप को सचेत होना होगा, ध्यान में उतरना होगा। तीनों गुण अपना काम करता है हमें ध्यान का अलावा कोई और रास्ता नहीं है पूर्ण मुक्ति के लिए भी ध्यान में उतरना होगा, तभी हम पूर्ण जागरूक होंगे स्वयं को समझने में ऊर्जा को लगाना होगा, लेकिन फिर अन्य कामना का क्या होगा पद का नाम का सब में रहकर आप ध्यान कीजिए आपको छोड़ने की आवश्कता नहीं भागना नहीं है जागना है क्योंकि कोई ऐसा स्थान नहीं जहां एकांत हो जंगल में जाएंगे फिर पक्षी जानवर या मन में विचार के साथ लड़ेंगे क्या करेंगे, त्याग के बारे में सोचते रहेंगे इससे हमें क्रोध बढ़ता चला जायेगा। सभी ध्यानी एक ही बात कहते हैं कि स्वयं में उतर जाओ आ जाओ सागर में डुबकी लगाने क्यों बूंद बूंद इकट्ठा कर रहे हैं जबकि पूरा ब्रह्मांड आपके अंदर है सब कुछ से आप पर्याप्त है फिर भी कटोरा लेकर प्रतिदिन निकलते हैं उसमें छेद है असंतुष्ट का को संतुष्ट की उपस्थिति के बिना नहीं भर सकता है। हमें ध्यान देने की आवश्कता है तब हम पूर्ण आनंद को उपलब्ध होंगे। अभी बहुत तनाव रहता होगा हम प्रतिदिन तैयारी करते हैं कि ये मिल जाए वह मिल जाए बस मिट्टी इकट्ठा करते हैं और जो बहुमूल्य है उसको हम खोते जा रहे हैं। हमें स्वयं को रूपांतरण करना होगा तभी हम परिवर्तन के मार्ग पर चलते रहेंगे और शांति प्रेम के मार्ग को मज़बूत करते रहेंगे।
परमानंद को देखना है फिर पागल तो होना ही होगा। पागल होने की बजाय और कोई रास्ता नहीं और कोई मार्ग नहीं। बस हमें भीतर आना है लोग क्या कहेंगे लोग तो कहते रहेंगे क्योंकि उनके पास मुंह है, वह कुछ तो बोलेंगे ही चाहे होश से भागना ही क्यों न हो। सही बात है जैसे आप बोलते है आप होश से नीचे आते हैं जब ही बोलोगे होश को हटाना होगा, और कोई रास्ता नहीं, चेतना यानी होश मौन लेकिन हम बोलना कैसे छोड़ देंगे हो नहीं सकता , हमें चिंतन करने की आवश्कता है क्यों हम बोलते हैं कितना हम बोलते हैं किसके लिए बोलते हैं इससे क्या लाभ होगा क्या हानि लेकिन हम चिंतन करते कहां है तुरंत बोल देते हैं ऊर्जा को कैसे भी खत्म करना है थकना है फिर रात में खा कर सोना है फिर ऊर्जा इकट्ठा करना है। फिर वही दिन शुरू हो जाता है क्रोध घृणा अति से प्रतिदिन गुजरते हैं मर गए हैं अंदर से कोई आवाज नहीं आता अब सब बंद हो गया। और आप भीड़ से अलग रहोगे तो पागल ही कहेगा सब और क्या बोलेगा भगवान नहीं बेवकूफ समझेगा। इसीलिए हमें अंदर तो आना होगा कुछ तो खोना होगा अहंकार हटाना होगा भूमि पर आना होगा तभी हम आकाश तक पहुंच सकते हैं अभी हम हवा में है कुछ पता नहीं। आंख बंद करते भी हैं तो अंधकार ही दिखाई देता है परमात्मा नही दिखते परिणाम देखना है ये देखना किसको है ये पहले देखो देखने वाले को खोजो सब उत्तर अंदर है सब उत्तर मिल जायेगा आप ठहरना तो शुरू कीजिए। आप को भी सब कुछ दिखेगा लेकिन स्थिरता तो लाओ पहले फिर सब संभव होगा। पागल तो कहेगा ही क्योंकि वह पागल का अर्थ नहीं समझे है जो गिर गया और उठने में सफल नहीं हो रहा है उसे हम पागल कहते हैं लेकिन जो दोनों में खुश हो जो उठना नही चाहता वह मालिक है उसे अब रस नहीं उठने में, वह संत हो सकता है। लेकिन हम उत्तर देने में माहिर खिलाड़ी हैं साहब। हमें भीतर आना होगा तभी हम पूर्णता के तरफ़ बढ़ेंगे और पूर्ण जागरूक होंगे।
हमें अंदर आने की आवश्कता है तभी हम पूर्ण आनंदित होंगे अभी हम सब कुछ बाहर समझ रहे हैं लेकिन हम भूल में जी रहे हैं हमें कुछ पता नहीं बस हम धारणा पकड़ लेते हैं की हम ये है हम वह है हमें स्वयं को स्वीकार करना होगा तभी हम पूर्ण रूपांतरण के ओर बढ़ेंगे और स्वयं के साथ दूसरे को भी प्रेम दे सकते हैं अभी हम घृणा क्रोध से भर जाते हैं कभी प्रेम करुणा दिखाते हैं फिर कुछ देर बाद हम क्रोध घृणा से भर जाते हैं वही मनुष्य है फिर बदल कैसे जाता है। सुबह में कुछ दोपहर में कुछ शाम में कुछ रात में कुछ ये जीवन चक्र चलता रहता है लेकिन हम जानने के बजाय स्वयं के साथ लड़ने लगते हैं स्वयं को स्वीकार करने के बजाय हम लड़ने लगते हैं या भागने लगते हैं। या तो क्रोध त्याग या घृणा भागना मुंह फुलाना ये सब आम बात है लेकिन फिर भी हम जानने में उत्सुक नहीं होते बल्कि भागने में होते हैं जानने में ऊपर उठना होता है देखना होता है स्वयं को स्थिर करना होता है शरीर से अलग होना पड़ता है लेकिन हम मेहनत से बचते हैं स्वयं को इसी कारण हम नहीं जान पाते। हिम्मत करते भी हैं तो कुछ देर बाद हम ठंडा हो जाते हैं और फिर वही कामना में उतर जाते हैं दिन भर देखो तो आप करते क्या हैं स्वयं को एक दिन निरीक्षण करो देखो पता करो की हम दिन भर क्या करते हैं कितना कामना करते हैं कितना करुणा कितना क्रोध कितना घृणा कितना हम अति के बारे। में सोचते हैं सब कुछ देखो निरीक्षण करो स्वयं चौंक जाएंगे आप परिणाम देख कर दंग रह जाएंगे, कुछ भले आदमी है वह करुणा अधिक स्वयं के लिए कामना कम रखते हैं दूसरे के लिए जीते हैं वह इसी कारण दुख में रहते हैं, लेकिन हम स्वयं के बारे में सोचते भी कम है क्यूंकि हम मन के निचले हिस्से में अटके रहते हैं हृदय से जीते हैं।
और बाकी के लोग कामना में फंसे रहते हैं पूरे दिन तनाव कैसे होगा कब होगा कितना होगा चौबीस घंटे यही चलता रहता है सोते भी है स्वप्न में भी हम दौड़ते रहते हैं हम पूर्ण नहीं हो पाते कभी मन नहीं भरता कभी कैसे भरेगा भाई क्योंकि मन कभी भर नहीं सकता उसका कारण है यहां हर कुछ पल मे जन्म हो रहा है और मृत्यु भी ये सृष्टि हो रह है ना की हो गया है हो रहा है फ़ैल रहा है। लेकिन हमें पता ही नहीं चलता कि हम कितना कुछ हासिल कर लेंगे फिर भी अधूरा रहेंगे कभी पूरा नहीं हो सकता क्योंकि मन हमारा अस्तित्व ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है जो प्रति पल पैदा हो रहा है और समाप्त भी और हम यहां कामना को इकट्ठा कर रहे हैं भर रहे हैं कभी नहीं भर सकता भरने वाला का पता चल जाए फिर हम पूर्ण हो सकते हैं लेकिन पता कैसे चलेगा हम कामना के चक्कर में बाहर फंसे हैं उसे अंदर लाना होगा देखना होगा मन कैसा है शरीर मन कैसे काम करता है क्या हम भौतिक तक सीमित है या उसके अंदर सूक्ष्म भी है पता करना होगा। तभी हम पूर्ण होंगे लेने वाले का पता चल जाए ये भोग करने वाला कौन है सबको अलग अलग करके देखना होगा इसीलिए हमें अंदर आना होगा तभी हम पूर्ण होंगे जीवंत होंगे जागृत होंगे फिर हम स्वयं को जान सकते हैं देख सकते हैं फिर हमें भटकने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ती हम शांत हो जाते हैं शून्य में प्रवेश कर जाते हैं। जागते रहिए जानते रहिए।
धन्यवाद।🙏❤️
रविकेश झा।