आधी-अधूरी दुनिया (कहानी)
आधी-अधूरी दुनिया (कहानी)
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लॉकडाउन खुलने के बाद रमेश जब अपने कार्यालय में गया तो कंपनी के मालिक ने ऑफिस में मीटिंग बुला रखी थी। धीरेंद्र बाबू कंपनी के मालिक थे। उदास चेहरे से माथे पर हाथ धरे हुए बैठे थे।
” कंपनी घाटे में जा रही है । वेतन देने की बात तो दूर रही , कंपनी के दरवाजे पर ताला लगाने की नौबत आ गई है।”- इतना कहकर धीरेंद्र बाबू ने सिर झुका लिया।
दो मिनट तक सर्वत्र शाँति थी ।कोई कुछ नहीं बोला । फिर धीरेंद्र बाबू ने सिर उठाया और कहा ” फिर भी कंपनी अपने सभी कर्मचारियों को इस महीने का आधा वेतन देगी ।”
सुनकर सबके चेहरे पर कई उतार-चढ़ाव आए । एक बार तो सबको लगा था कि नौकरी गई । लेकिन फिर जब यह पता चला कि नौकरी आधी गई है, तो सब ने राहत की साँस ली। अब यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि खुशी मनाएँ या गम । उधर सेठ जी उदास थे । सब कर्मचारी परिस्थितियों को समझ रहे थे। किसी ने कुछ नहीं कहा। मीटिंग समाप्त हो गई। सब चले आए ।
घर आकर रमेश ने पत्नी को खबर सुनाई। पत्नी का चेहरा भी उतर गया । घर में दो नौकर लगे हुए थे। एक खाना बनाने वाली थी। दूसरी झाड़ू पोछा बर्तन के लिए थी । रमेश ने कहा “दोनों की छुट्टी कर दो।”
लेकिन पत्नी शीला ने कहा “आधे वेतन पर जैसे आप हैं , उन्हें भी आधे वेतन पर रख लीजिए।”
” ठीक है ।”-रमेश का बुझा हुआ जवाब था । तभी पीछे से खटपट की आवाज आई। रमेश ने देखा, पिताजी खड़े हैं।
” हाँ बेटा ! मैं यह कहने आया हूँ कि मेरे कविता संग्रह की बीस हजार रुपए में छपने की योजना बनी थी। अब उस कार्य को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दो।”
” लेकिन पिताजी …”
” कुछ नहीं… घर सही से चलाओ। कर्मचारियों को इस महीने का वेतन पूरा ही दे दो । कविता संग्रह छपता रहेगा।”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451