आदिवासी कभी छल नहीं करते
आदिवासी होकर जीना सरल नहीं है
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आदिवासी होना
खूबसूरत है लेकिन
आदिवासी होकर जीना
सरल नहीं है….
खूबसूरत इसलिए क्योंकि
आदिवासी छल नहीं करते
दूसरों की भर्त्सना में
व्यर्थ एक पल नहीं करते
उन्हें प्रेम है
फूल से, पेड़ से, पत्तियों से
उन्हें लगाव है
अपनी सुदूर एकाकी बस्तियों से
उनके नृत्य में
सम्मोहक लय ताल है
रोटी और चटनी में
स्वाद वाकई कमाल है
चाहे जिसका देख लो
बैंक बेलेन्स जीरो मिलेगा
चटकीला कमीज, काला चश्मा
हर युवक हीरो मिलेगा
और समाजों में हो न हो
मगर यहाँ नारी सम्मान है
मैंने खुद देखा
इन्हें बेटियों पर अभिमान है
भूखे पेट और नंगे पैर
मीलों पैदल चल सकते हैं
आजमा लेना आपके लिए
दीपक बनकर जल सकते हैं…
आदिवासी होकर जीना
कठिन है बहुत क्योंकि
बारिश में झोपड़ी जलमग्न हो जाती है
और अगर जल न बरसे तो
जीवन की हर उम्मीद भग्न हो जाती है
रेंगते हुये पहुँच रही है शिक्षा
अब तो कुएं भी दम तोड़ गए हैं
रोजी रोटी की जद्दो-जहद में
जाने कितने अपने गाँव छोड़ गए हैं
कल के बंदोबस्त का कौन कहे
आज का भी कुछ पक्का नहीं है
कभी घर में दाल नहीं तो
कभी मुट्ठी भर भी मक्का नहीं है
दिक्कतें इतनी हैं कि
सोचकर भी आँखें भर आती हैं
इनका संघर्ष देखते हुये
दिल की धड़कनें ठहर जाती हैं …..
:राकेश देवडे़ बिरसावादी सामाजिक कार्यकर्ता