आदिवासियों पर अत्याचार
मैं बाग नहीं,
जंगल चाहता हूं
इस शहर से
दंगल चाहता हूं…
(१)
आदिवासियों के
मूद्दों को लेकर
पूरे देश में
हलचल चाहता हूं…
(२)
आग उगलती
बंदूकों के ख़िलाफ़
चारों तरफ़
जलथल चाहता हूं…
(३)
आधी-अधूरी
ज़िंदगी के बजाय
अब मौत भी
मुकम्मल चाहता हूं…
(४)
जो हंसते हुए
लाठियां खा सकें
कुछ ऐसे
पागल चाहता हूं…
(५)
इंकलाब ज़िंदाबाद के
नारों से
गूंजते हुए
मक़तल चाहता हूं…
Shekhar Chandra Mitra
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