आदाब अर्ज है
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त
“ बेचैनियां जब आती है कलम उठती है लिखने को ||
लोग कहते हैं तुमने आदत बना ली है, बहाना है न मिलने को “||
बचपन बहुत असहाय था जवानी गुजरी रोटी रोजी जुटाने को ||
अब ढलती उम्र है मेरी फ़क़त ता उम्र की कहानी सुनाने को ||