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21 Apr 2024 · 1 min read

आदर्श

नभ मे तारे अगणित है,पर ध्रुव की बात निराली है !
अमावस्या या पूर्णमासी उसकी स्थिति स्थिर वाली है!!

पर मानव ने उसको कभी अपना आदर्श नही माना,
बदले संदर्भो मे स्थितिया बदल गिरगिट अपना ली है!!

भोर से लेकर साझ तक यह कितने रंग बदलता है?
मानव ने बदले चाल-चलन,धर्म आस्था बदल डाली है!!

स्वार्थ,समय,समर्पण पर पल-पल ढंग बदलता मानव,
इससे बडा न कोई नेता या अभिनेता करतूते काली है!!

छल छद्म वेष धर रावण यदि मृग बन सीता छलता है,
कृष्ण ने भी मानव रुप मे अपनी सीमा बदल डाली है!!

सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुज फेस -2 ,सिकंदरा,आगरा -282007
मो:9412443093

1 Like · 107 Views
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