आदर्श बहू
बहू कल निम्मी को लेने आने वाले है, मैंने शाम को सबका खाना रखा है, कुल 8 – 9 लोग है तुम सम्भाल लोगी ना। सासुजी ने कहा ।
वंदना – जी मम्मी जी,
अब सासुजी ने अगला पासा फेंका, अच्छा वो मैंने अपनी बहन के घर वालों को भी बुलाया है, बस इतना ही होगा ।
वंदना – जी मम्मी जी,
अच्छा तू पेपर पेन ला हम खाने का मेनू और समान, सब्जी वगैरह की लिस्ट बना लेते हैं, शाम को तू सुपर मार्केट से ले आना
वंदना – जी मम्मी जी,
अरे गिफ्ट भी तो देने पड़ेंगे, खाली शगुन तो ओल्ड फैशन हो गया,और निम्मी के लिए साड़ी भी लानी होगी, अच्छा बहू ऐसा करो तुम फ़टाफ़ट रसोई निपटा के मार्केट निकल जाओ, ताकि शाम तक लौट आओ, फिर तुम्हें खाना भी बनाना है, मुझसे अब ये मार्केट के काम नहीं होते, घुटनों में भी दर्द है पर बच्चों को देख लूंगी । सासुजी ने एहसान जताते हुए कहा ।(बच्चे 13 – 14 साल के है)
वंदना – जी मम्मी जी,
रसोई से निपटते हुए 3 बज गये, गाड़ी लेकर वंदना मार्केट पहुंची, निम्मी के लिए साड़ी , गिफ्ट्स आदि में ही 6 बज गये, सुपर मार्केट में भी 2 घंटे लगे, भीड़ हो जाती हैं शाम को काउंटर पर, लौटी तो 8.30 हो गए ।
अंदर आते ही सासूजी बोली बहू क्या पूरा बाजार खरीदने गई थी, इतना वक़्त लगा दिया, सचिन भी ऑफिस से आ गया, अब जल्दी से खाने की तैयारी करो बच्चे भूखे है
वंदना – जी मम्मी जी
रसोई में घुसी तो दिमाग घूम गया, सिंक बर्तनों से भरा था, पूरी स्लैब पर फ्रूट, प्याज के छिलके, सास, बिखरे पड़े थे, फ़्रिज में एक भी बोतल भरी नहीं थी। बच्चों ने खुद ही खाना और फ़्रूट आदि लिये होंगे, माताजी ने तो किचन की ओर मुँह भी नहीं किया, वंदना सोचती रही कि दाल ही बॉईल कर देती या सब्जी काट कर रखती तो कितनी मदद मिलती। बोतल तो बच्चों से भरवा देतीं, काम करते हुए 12 बज गये, रुम में आई तो सचिन ने कहा, एक मेड क्यों नहीं रख लेती, थोडी हेल्प हो जाती ।
वंदना – मेड की ज़रूरत नहीं है, वैसे भी मम्मी को पसंद नहीं है।
अगले दिन शाम को इतने लोगों का खाना, सारी तैयारी खुद वंदना ने की, बस रोटी बनाने वाली 2 हैल्पर बुलाई थी, ऊपर से फरमान आया | यूँ बेकार सी डेली वियर साड़ी की बजाय अच्छी कामवाली, साडी और कुछ ट्रेडिशनल गहने भी पहनने है, वरना लोग सोचेंगे कि बहू की कदर नहीं है
वंदना ने बनारसी साड़ी, जड़ाऊ कंगना ओर नेकलेस सेट पहना, उस पर इतना काम, सब वंदना के खाने, पहनावे, शालीनता की तारीफ कर रहे थे पर वंदना बहुत थकी हुई और अंदर से उदास थी क्योंकि सासूजी के मुंह से एक शब्द तारीफ का नहीं निकला ।
अगले दिन सुबह मौसी सास के घर पर सबका खाना रखा गया, उनकी बहू प्रीति ने भी सबका खाना खुद बनाया, वो भी बहुत सुंदर साड़ी और गहने पहन कर तैयार हुई, वो बिलकुल थकी हुई नहीं लग रही थी, वंदना ने गौर किया कि उसके हाथ मेनिक्योर किये हुए, अच्छी तरह नेलपॉलिश और किसी भी तरह से काम करने वाले नहीं लगे ।
वंदना ने पूछा प्रीति तुम कैसे इतना काम करने के बावजूद, खुद को मेंटेन कर रही हो, तुम्हारे हाथ इतने कोमल और तुम इतनी तरोताज़ा कैसे रह लेती हो ।
प्रीति बोली – भाभी आप बहुत भोले हो, किसका दिमाग खराब है जो इतने लोगों का खाना अकेले बनाये, वो जो 2 हैल्पर रखी थी उनको मैंने 1000 रूपये एक्सट्रा दिए तो उन्होंने सारी तैयारियां खुद की | रोटी भी वही बनायेगी, मेड को 500 रूपये दिये तो पूरा दिन यही बर्तन,सफाई का ख्याल रखेगी और तारीफ तो मेरी भी हो रही है, शायद आपसे ज्यादा क्योंकि में सबके साथ एंजॉय कर रही हूं, और आप थकान से बेहाल थी।
भाभी थोड़ा शातिर बनना पड़ता, किसी को परवाह नहीं है और किसी को खुश करने के लिए खुद को मिटाना, अपने ऊपर अन्याय है, अगर हम खुद खुश नहीं है तो परिवार कैसे खुश रहेगा।
भाभी आप भी हर वक़्त हुक्म बजाना बंद कीजिए क्योंकि हम बहू है जिन्नी नहीं जो सब की ख्वाहिशें पूरी करती फिरे ।
वंदना अब समझ चुकी थी कि वो बहू है जिन्नी नहीं |