आदमी
|| आदमी||
वो आदमी ही तो है
सभ्य समाज का सभ्य प्राणी
पढ़ा लिखा और बुद्धजीवी
फिर ,क्यों करता है व्यवहार
जाहिलों और गवारों जैसा ?
क्योंकि ,
वो आदमी ही तो है ,
किसने दिया है ये हक उसे
कि ,देश के भविष्य को रौंदो
अपने अहंकार के जूते तले
क्या ,वो इंसान नहीं हैं ?
क्या ,उन्हें जीने का हक नहीं है ?
अरे ,अहंकारी मनुष्य
उठो और जागो -अपने अहंकार से
और….,
देश के भविष्य पर अहंकार का जूता
नहीं ,
अपने ज्ञान और स्वाभिमान का हाथ
रखो , ये कल का भविष्य हैं ,
क्योंकि , ये भी कल के आदमी हैं ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
17-02-2024