बहुत उम्मीदें थीं अपनी, मेरा कोई साथ दे देगा !
*भीड़ से बचकर रहो, एकांत के वासी बनो ( मुक्तक )*
दो दिन की जिंदगी है अपना बना ले कोई।
जिस यात्रा का चुनाव हमनें स्वयं किया हो,
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
23/135.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
लहज़ा रख कर नर्म परिंदे..!!
नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि,
आनंद जीवन को सुखद बनाता है
मैं ना जाने क्या कर रहा...!
सच तो रंग काला भी कुछ कहता हैं
नृत्य किसी भी गीत और संस्कृति के बोल पर आधारित भावना से ओतप्