आदमी
याद की झंझट से थोड़ा दूर होता आदमी
फिर इसकदर तन्हा और न मजबूर होता आदमी
आधा अच्छा, आधा बच्चा, आधा सच्चा है अभी
याद की झंझट न होती तो भरपूर होता आदमी
शेर पढ़ डाले हैं कितने, शेर कह डाले हैं कितने
खुद की बात खुद से कहता मशहूर होता आदमी
दिल बातें मानकर है कर लिया गुनाह सारा
मुँह छुपाता खुद से ना फिर मगरूर होता आदमी
रात की तन्हाइयों में हो गया चिंता से कारा
वरना सूरज -ए – सुर्ख का सुरूर होता आदमी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी