आदमी (नवगीत)
नवगीत
श्याम-पट पर
अक्षरों-सा
नहीं चमकता आदमी ।
अक्षरों पर
श्याम-पट-सा
काला दिखता ।
ज़हर ज़माने
का काग़ज पर
है यह लिखता ।
अंधकार में
जुगनू जैसा
नहीं दमकता आदमी ।
वियर बार में
रोज़ सबेरे
मंजन करता ।
कटुता और
घृणा से ही
यह रंजन करता ।
मित्रों की भी
त्रयोदशी की
बाट जोहता आदमी ।
कानों में
चमगादड़ लटकी
फड़-फड़ करती ।
आँखों में
सारी दुनियाँ ही
रोज़ खटकती ।
जिह्वा के बिच्छू
का निशिदिन
डंक पटकता आदमी ।