आदमी के नयन, न कुछ चयन कर सके
आदमी के नयन, न कुछ चयन कर सके
क्या सही, क्या गलत, ये अलग बात थी
जिन्दगी चल सकी न मजे से कभी,
अब अलग बात है, तब अलग बात थी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदमी के नयन, न कुछ चयन कर सके
क्या सही, क्या गलत, ये अलग बात थी
जिन्दगी चल सकी न मजे से कभी,
अब अलग बात है, तब अलग बात थी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी