आदमखोर कहानी
कभी खूब वर्षा, कभी रिमझिम बारिश ! कभी सूरजमल सेठ का आकाशी प्रहार ! कभी बिजली ऐसी कि पंखे से निकलती शीतल बयार । कभी बेडशीट ओढ़ती- ओढाती है। कभी बारिश से देह भींगती, ठंढक से शीतलता मिलती, तो गर्मी और उमसता पा देह व्याकुल हो जाते !
ऐसे में एक जीव बहुत खुश हो जाते हैं, ऐसे जीव घेर-घाड़ कर आपके रुपये ही निकालते हैं केवल ! सावधान, ऐसे जीव आपके आसपास ही होते हैं, उनकी घेराबंदी इतनी मजबूत होती है कि आप ही उनके पास खिंचे चले जाते हैं !
यह जुलाई-अगस्त महीना व सावन-भादो महीना उस जीव के लिए ही हैं, तो अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहिये और ऐसे जीव ‘डॉक्टर’ से कम से कम यह दो माह सावधान रहिये ! …. क्योंकि इस दो माह डॉक्टर ज्यादा ही मुस्कराते हैं !
हाँ, देकर जख़्म, लिखे कविता ‘जख़्मी जी’–
“नारों ने ठगा हमको,
वादों ने ठगा हमको ।
मंत्री ने ठगा हमको,
प्यादों ने ठगा हमको ।
सावन का भरम देकर-
भादों ने ठगा हमको !”
प्रथम भाग समाप्त, अब दूसरा भाग तो देखिए यानी पिक्चर अभी बाकी है, मित्रो !
लीज़ पर पत्नी को रखनेवाले मरदुआ ! कहने को जमींदार रह गए हैं, अकड़ कर कहते फिरेंगे, अरबों संपत्ति है, किन्तु जब टैक्स देने की बात आएगी, तो कहते हैं- जमीन तो अभी भी काफी है, किन्तु वहाँ भूसा तक नहीं होती !
इनकम ही नहीं, तो टैक्स कहाँ ? ऐसे बंजर जमीन को किसी ने ‘बिजली’ विभाग को, कितने ने ईंट भट्ठा को करोड़ों में लीज़ दिए हुए हैं ! ऐसे भी सम्पन्न व्यक्ति हैं, जो अपनी बीवी को भी लीज दिए हुए हैं, खून के छोटे भाई न सही, दूर-दराज के देवरों के हवाले सही ! समाज में ऐसे कथित बड़े लोग हैं, अब भी !
ऐसे में काका बिहारी ने कहा है-
“जहाँ रोगी पीला,
डॉक्टर लाल है;
समझो वही-
सरकारी अस्पताल है ।”