आत्मीयता
मेरे एक परम मित्र अशोक जी का तबादला मेरे शहर में हो गया। एक दिन मैं सपरिवार बिना उनको सूचना दिए, उनका कुशलक्षेम पूछने उनके निवास स्थान पर पहुँचा। अभी हमलोग उनके घर के प्रवेशद्वार पर खड़े ही हुए थे कि एक काली आवारा कुत्तिया जोर-जोर से हमलोगों के ऊपर भौंकने लगी। मेरी पत्नी और बेटी उसके भौंकने की आवाज को सुनकर डर के मारे मुझ से चिपक गए। मैं भी डर के मारे ‘हट-हट’ कह रहा था, परन्तु उसने भौंकना कम नहीं किया। तभी कुत्तिया के भौंकने की आवाज को सुनकर अशोक दम्पत्तिबाहर निकले और हमलोगों को देखकर उन्होंने कुत्तिया को डाँटते हुए कहा, “जूली नहीं, जूली नहीं। “इतना सुनते ही जूली शांत होकर अपनी दुम हिलाते हुए अशोक के पास चली गई। अशोक उस कुत्तिया को प्यार से पुचकारते हुए उसे सहलाने लगा और हमलोगों को इशारे से अंदर आने को कहा। हमलोग सहमते हुए उसके घर में घुसे और पीछे-पीछे अशोक दम्पत्ति ने घुसते हुए कहा , “यार राकेश! तुमने यहाँ अपने आने की सूचना भी नहीं दी। चलो तुमलोग अचानक आए तो और अच्छा लगा। हमलोग भी सोच रहे थे कि घर व्यवस्थित हो जाए तो तुमसे मिलने जाएँगे।”
मैंने हँसते हुए कहा, “तुमसे पहले तो तुम्हारी जूली से मुलाक़ात के कारण हम सभी की साँसें अभी तक गले में अटकी पड़ी है। ”
इतना सुनते ही अशोक की पत्नी पानी लेने रसोई की तरफ गई तब अशोक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “सच पूछो तो राकेश, शुरू-शुरू में हमलोग भी इस जूली से परेशान थे। हमलोगों के पड़ोस में वर्मा जी के यहाँ जूली पड़ी रहती है। वर्मा जी सुबह और रात को इसे नियमित रूप से रोटी खिलाते हैं और यह दिनभर आवारा की तरह घूमती है और रात को इस गली की रखवाली करती है। एक-दो दिन जूली के भौंकने पर वर्मा जी ने इसे डाँट लगाई, उसके बाद हमलोगों को शान्ति मिली।”
अशोक की पत्नी पानी लेकर आई और हमलोग का मन पानी पीकर शांत हुआ। अन्य औपचारिक बातें करते-करते शाम हो गई। नाश्ता कर अशोक दम्पत्ति से हमने विदा ली। हमलोगों को छोड़ने अशोक दम्पत्ति के साथ-साथ जूली भी मुख्य सड़क तक आई और हमलोग अपने घर पहुँचे। इसके बाद एक-दूसरे के यहाँ आना-जाना लगा रहा और जूली उस दिन के बाद हमलोगों पर कभी नहीं भौंकती, परन्तु कुत्तों का भय अभी भी हमलोगों के दिलों-दिमाग में रहता है।
किसी कारणवश मुझे भी अपने किराए के मकान को छोड़ना पड़ा और अशोक की मदद से उसकी गली के दूसरे छोर पर एक किराए का मकान मिल गया। एक रात पुराने मकान से नए मकान में सामान रख कर वापस लौट रहा था तभी गली के तीन-चार कुत्ते मुझ पर झपट पड़े। उनके सामूहिक हमले से मैं घबरा गया। मैं जितना जोर से ‘हट-हट’ की आवाज करता, कुत्ते उससे ज्यादा तेज आवाज में भौंकते। इसी क्रम में कुत्ते इतने पास आ गए कि मैं अपना संतुलन खो कर गिरने ही वाला था, तभी जूली तेजी से दौड़ते हुए उन कुत्तों पर भौंकने लगी। उसके भौंकने से सभी कुत्ते भाग गए। जूली अपनी दुम को तेजी से हिलाते हुए मेरे सामने खड़ी हो गई। मेरी जान में जान आई और मन ही मन जूली का आभार प्रकट कर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ गया।
एक दिन वर्मा जी का भी तबादला किसी अन्य शहर में हो गया। सामान को ट्रक पर चढ़ते देख जूली को कुछ समझ नहीं आया। वर्मा जी चले गए और जूली उनकी राह उनके दरवाजे पर ताकती रहती। कुछ दिनों तक बावली की तरह गलियों में चक्कर लगाती रही और अंत में वह समझ गई की मेरे मालिक अब नहीं लौटेंगे। उस गली के सभी मकानों के दरवाजे पर बारी-बारी से रहने गई परन्तु किसी ने उसे आश्रय नहीं दिया। समय पर खाना नहीं मिलने से दिन पर दिन कमजोर होती गई। अब उस गली पर अन्य आवारा कुत्तों ने कब्ज़ा जमा लिया। एक रात मेरे घर के पास बहुत से कुत्तों के भौंकने की आवाज को सुन कर मैं बाहर निकला तो देखा कि जूली पर बहुत सारे कुत्ते झपट्टा मार-मार कर उसे घायल कर रहे थे। मैंने पास पड़े एक डंडे को उठाकर जोर से ‘हट-हट’ का आवाज लगाई । मेरी आवाज सुनकर सभी कुत्ते भाग गए और जूली भागते हुए मेरे पास आकर अपनी दुम जोर-जोर से हिलाने लगी। न चाहते हुए भी मैंने उसकी पीठ को सहलाया तो वह आराम से वहीं बैठ गई। मैं अंदर गया और उसके लिए रोटी और दूध लेकर आया। वह दूध और रोटी को ऐसे खा रही थी मानों वह कई दिनों से भूखी हो। उसके खाना खा लेने के बाद हमदोनों एक-दूसरे को आत्मीयता की दृष्टि से देख रहे थे।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव ‘राही’