Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 4 min read

आत्मीयता

मेरे एक परम मित्र अशोक जी का तबादला मेरे शहर में हो गया। एक दिन मैं सपरिवार बिना उनको सूचना दिए, उनका कुशलक्षेम पूछने उनके निवास स्थान पर पहुँचा। अभी हमलोग उनके घर के प्रवेशद्वार पर खड़े ही हुए थे कि एक काली आवारा कुत्तिया जोर-जोर से हमलोगों के ऊपर भौंकने लगी। मेरी पत्नी और बेटी उसके भौंकने की आवाज को सुनकर डर के मारे मुझ से चिपक गए। मैं भी डर के मारे ‘हट-हट’ कह रहा था, परन्तु उसने भौंकना कम नहीं किया। तभी कुत्तिया के भौंकने की आवाज को सुनकर अशोक दम्पत्तिबाहर निकले और हमलोगों को देखकर उन्होंने कुत्तिया को डाँटते हुए कहा, “जूली नहीं, जूली नहीं। “इतना सुनते ही जूली शांत होकर अपनी दुम हिलाते हुए अशोक के पास चली गई। अशोक उस कुत्तिया को प्यार से पुचकारते हुए उसे सहलाने लगा और हमलोगों को इशारे से अंदर आने को कहा। हमलोग सहमते हुए उसके घर में घुसे और पीछे-पीछे अशोक दम्पत्ति ने घुसते हुए कहा , “यार राकेश! तुमने यहाँ अपने आने की सूचना भी नहीं दी। चलो तुमलोग अचानक आए तो और अच्छा लगा। हमलोग भी सोच रहे थे कि घर व्यवस्थित हो जाए तो तुमसे मिलने जाएँगे।”

मैंने हँसते हुए कहा, “तुमसे पहले तो तुम्हारी जूली से मुलाक़ात के कारण हम सभी की साँसें अभी तक गले में अटकी पड़ी है। ”

इतना सुनते ही अशोक की पत्नी पानी लेने रसोई की तरफ गई तब अशोक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “सच पूछो तो राकेश, शुरू-शुरू में हमलोग भी इस जूली से परेशान थे। हमलोगों के पड़ोस में वर्मा जी के यहाँ जूली पड़ी रहती है। वर्मा जी सुबह और रात को इसे नियमित रूप से रोटी खिलाते हैं और यह दिनभर आवारा की तरह घूमती है और रात को इस गली की रखवाली करती है। एक-दो दिन जूली के भौंकने पर वर्मा जी ने इसे डाँट लगाई, उसके बाद हमलोगों को शान्ति मिली।”

अशोक की पत्नी पानी लेकर आई और हमलोग का मन पानी पीकर शांत हुआ। अन्य औपचारिक बातें करते-करते शाम हो गई। नाश्ता कर अशोक दम्पत्ति से हमने विदा ली। हमलोगों को छोड़ने अशोक दम्पत्ति के साथ-साथ जूली भी मुख्य सड़क तक आई और हमलोग अपने घर पहुँचे। इसके बाद एक-दूसरे के यहाँ आना-जाना लगा रहा और जूली उस दिन के बाद हमलोगों पर कभी नहीं भौंकती, परन्तु कुत्तों का भय अभी भी हमलोगों के दिलों-दिमाग में रहता है।

किसी कारणवश मुझे भी अपने किराए के मकान को छोड़ना पड़ा और अशोक की मदद से उसकी गली के दूसरे छोर पर एक किराए का मकान मिल गया। एक रात पुराने मकान से नए मकान में सामान रख कर वापस लौट रहा था तभी गली के तीन-चार कुत्ते मुझ पर झपट पड़े। उनके सामूहिक हमले से मैं घबरा गया। मैं जितना जोर से ‘हट-हट’ की आवाज करता, कुत्ते उससे ज्यादा तेज आवाज में भौंकते। इसी क्रम में कुत्ते इतने पास आ गए कि मैं अपना संतुलन खो कर गिरने ही वाला था, तभी जूली तेजी से दौड़ते हुए उन कुत्तों पर भौंकने लगी। उसके भौंकने से सभी कुत्ते भाग गए। जूली अपनी दुम को तेजी से हिलाते हुए मेरे सामने खड़ी हो गई। मेरी जान में जान आई और मन ही मन जूली का आभार प्रकट कर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ गया।

एक दिन वर्मा जी का भी तबादला किसी अन्य शहर में हो गया। सामान को ट्रक पर चढ़ते देख जूली को कुछ समझ नहीं आया। वर्मा जी चले गए और जूली उनकी राह उनके दरवाजे पर ताकती रहती। कुछ दिनों तक बावली की तरह गलियों में चक्कर लगाती रही और अंत में वह समझ गई की मेरे मालिक अब नहीं लौटेंगे। उस गली के सभी मकानों के दरवाजे पर बारी-बारी से रहने गई परन्तु किसी ने उसे आश्रय नहीं दिया। समय पर खाना नहीं मिलने से दिन पर दिन कमजोर होती गई। अब उस गली पर अन्य आवारा कुत्तों ने कब्ज़ा जमा लिया। एक रात मेरे घर के पास बहुत से कुत्तों के भौंकने की आवाज को सुन कर मैं बाहर निकला तो देखा कि जूली पर बहुत सारे कुत्ते झपट्टा मार-मार कर उसे घायल कर रहे थे। मैंने पास पड़े एक डंडे को उठाकर जोर से ‘हट-हट’ का आवाज लगाई । मेरी आवाज सुनकर सभी कुत्ते भाग गए और जूली भागते हुए मेरे पास आकर अपनी दुम जोर-जोर से हिलाने लगी। न चाहते हुए भी मैंने उसकी पीठ को सहलाया तो वह आराम से वहीं बैठ गई। मैं अंदर गया और उसके लिए रोटी और दूध लेकर आया। वह दूध और रोटी को ऐसे खा रही थी मानों वह कई दिनों से भूखी हो। उसके खाना खा लेने के बाद हमदोनों एक-दूसरे को आत्मीयता की दृष्टि से देख रहे थे।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव ‘राही’

1 Like · 4 Comments · 594 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रमेशराज के नवगीत
रमेशराज के नवगीत
कवि रमेशराज
नेताओं ने छेड़ दिया है,बही पुराना राग
नेताओं ने छेड़ दिया है,बही पुराना राग
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
बेज़ार सफर (कविता)
बेज़ार सफर (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
श्वान संवाद
श्वान संवाद
Shyam Sundar Subramanian
पिछले पन्ने 8
पिछले पन्ने 8
Paras Nath Jha
"तोता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझको खुद की दुख और पीड़ा में जीने में मजा आता है में और समझ
मुझको खुद की दुख और पीड़ा में जीने में मजा आता है में और समझ
पूर्वार्थ
Tuning fork's vibration is a perfect monotone right?
Tuning fork's vibration is a perfect monotone right?
Chaahat
मेरा गुरूर है पिता
मेरा गुरूर है पिता
VINOD CHAUHAN
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
Atul "Krishn"
झुकता आसमां
झुकता आसमां
शेखर सिंह
3511.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3511.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
अपने दीपक आप बनो, अब करो उजाला।
अपने दीपक आप बनो, अब करो उजाला।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
चिंगारी
चिंगारी
Dr. Mahesh Kumawat
मुक्तक
मुक्तक
sushil sarna
टुकड़े हजार किए
टुकड़े हजार किए
Pratibha Pandey
नदी का किनारा ।
नदी का किनारा ।
Kuldeep mishra (KD)
आदमी बेकार होता जा रहा है
आदमी बेकार होता जा रहा है
हरवंश हृदय
उसको देखें
उसको देखें
Dr fauzia Naseem shad
पितृ दिवस
पितृ दिवस
Dr.Pratibha Prakash
ये दिल उन्हें बद्दुआ कैसे दे दें,
ये दिल उन्हें बद्दुआ कैसे दे दें,
Taj Mohammad
यूँ ही नही लुभाता,
यूँ ही नही लुभाता,
हिमांशु Kulshrestha
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
Neelofar Khan
सिद्धार्थ
सिद्धार्थ "बुद्ध" हुए
ruby kumari
चाय दिवस
चाय दिवस
Dr Archana Gupta
*अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन*
*अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन*
Ravi Prakash
उत्कर्ष
उत्कर्ष
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
उनके आने से सांसे थम जाती है
उनके आने से सांसे थम जाती है
Chitra Bisht
मेरा गांव अब उदास रहता है
मेरा गांव अब उदास रहता है
Mritunjay Kumar
Loading...