आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये, नयनों का जल ढ़रक ना जाये
नयनों का जल ढ़रक ना जाये;
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।
नारी अपने मन की बातें,
रहने दे मर्यादा में हीं तू;
मत कर बेवजह की बातें,
आग ना लगा तू तन मन में;
आज नहीं आयेंगे कान्हा जग में,
द्रौपदी तेरी चीर बढ़ाने।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये;
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।
आज लाज खुद की तुझे,
स्वयं हीं बचानी होगी;
नहीं बात, अब ललकार से तुझे,
हर दुस्साशन को समझाना होगा;
मन को संभाल कहीं फिर वो,
किसी रावण के धोखे में ना आ जाए।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये;
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।
अहिल्या सीता पर भी कलंक लगाना,
इस जग की रीत पुरानी रही है;
कभी पाषाण सा बन सहना पड़ा है,
तो कभी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी है;
शक्ति स्वरूपा चंडी काली बन तांडव कर तू,
प्रमाण नहीं मांगे जग, देख काल सा तुझे घबराए।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये;
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।
भरी जवानी में बहक ना जाये,
शील तेरा भंग हो ना जाए;
करुण चित्कार से तेरी गूंजे,
अंधियारा धरती का कोना कोई;
नहीं अबला कोई अगर मौन तू,
दुर्गा बन असुरों का मर्दन करना होगा ।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये;
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।
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लेखक – मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव
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