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24 Apr 2018 · 1 min read

आत्मा की निर्मलता

जैसे कोई बूंद गगन से, वसुन्धरा पर गिरती है।

स्वच्छ और निर्मल होकर वह, चांदी जैसी चमकती है।।

यदि वह बूंद गिरे कीचड़ में, उसमे ही मिल जाती है।

वही बूंद यदि गिरे कमल पर मोहकता को बढ़ाती है।।

© प्रशान्त तिवारी “अभिराम”

Language: Hindi
Tag: लेख
427 Views
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