आत्मा की निर्मलता
जैसे कोई बूंद गगन से, वसुन्धरा पर गिरती है।
स्वच्छ और निर्मल होकर वह, चांदी जैसी चमकती है।।
यदि वह बूंद गिरे कीचड़ में, उसमे ही मिल जाती है।
वही बूंद यदि गिरे कमल पर मोहकता को बढ़ाती है।।
© प्रशान्त तिवारी “अभिराम”
जैसे कोई बूंद गगन से, वसुन्धरा पर गिरती है।
स्वच्छ और निर्मल होकर वह, चांदी जैसी चमकती है।।
यदि वह बूंद गिरे कीचड़ में, उसमे ही मिल जाती है।
वही बूंद यदि गिरे कमल पर मोहकता को बढ़ाती है।।
© प्रशान्त तिवारी “अभिराम”