बातें कल भी होती थी, बातें आज भी होती हैं।
मुझे गर्व है अलीगढ़ पर #रमेशराज
मुझको कभी भी आज़मा कर देख लेना
*जब से मुकदमे में फॅंसा, कचहरी आने लगा (हिंदी गजल)*
राजे तुम्ही पुन्हा जन्माला आलाच नाही
ऐ सूरज तू अपनी ताप को अब कम कर दे
चलो यूं हंसकर भी गुजारे ज़िंदगी के ये चार दिन,
*"जहां भी देखूं नजर आते हो तुम"*
वक्त ये बदलेगा फिर से प्यारा होगा भारत ,
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
माँ के बिना घर आंगन अच्छा नही लगता
बिहार के रूपेश को मिला माँ आशा देवी स्मृति सम्मान और मुंशी प्रेमचंद शिरोमणि सम्मान
“त्याग वही है, जो कर के भी दिखाया न जाए, यदि हम किसी के लिए
दूरी इतनी है दरमियां कि नजर नहीं आती
हे ! भाग्य विधाता ,जग के रखवारे ।