आत्मनिर्भरता
आत्मनिर्भरता
सेठ किरोड़ीमल कई फैक्ट्रियों के मालिक थे। ईश्वर की कृपा से उन्हें पैसों की कोई कमी नहीं थी। यही कारण है कि वे अपने कर्मचारियों को पर्याप्त वेतन, भत्ते और सुविधाएं देते थे। इसलिए उनकी फैक्ट्रियों में काम करने वाले सभी कर्मचारी खुश रहते थे और सेठजी का बहुत सम्मान भी करते थे।
एक बार उनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों के घर की महिलाओं ने सेठ जी से भेंट करते हुए कहा, “सेठ जी, हमारे परिवार के पुरुष सदस्य आपकी फैक्ट्रियों में काम करते हैं। उनको मिलने वाली वेतन-भत्तों से हम सबका गुजारा बहुत ही अच्छे से हो जाता है। आपके द्वारा खोले गए बेहतरीन स्कूल में हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं। जरूरत पड़ने पर आपके द्वारा खोले गए हॉस्पिटल में हम सबका इलाज भी बहुत ही कम फीस में हो जाता है। हम लोग जीवनभर आपका शुक्रगुजार रहेंगे।”
सेठ जी विनम्रतापूर्वक बोले, “देखिए बहनों, मैं आप लोगों पर कोई अहसान नहीं कर रहा हूं। आपके परिवार के लोग हमारे लिए दिन-रात इतना कुछ कर रहे हैं, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि उनके लिए कुछ करें। सो हम कर रहे हैं।”
एक वरिष्ठ महिला ने सेठ जी से आग्रह किया, “सेठ जी, हमारे घर के पुरुष जब काम पर और बच्चे स्कूल चले जाते हैं, तो हममें से ज्यादातर महिलाएं घर में खाली बैठी बोर होती रहती हैं। यदि आप हमारे लायक भी कोई काम की व्यवस्था कर दें, तो हम महिलाएं भी कुछ काम करके आत्मनिर्भर बनना चाहेंगी।”
सेठ जी ने पूछा, “हूं… बात तो आपकी एकदम सही है। अब आप ही लोग बताइए कि आप लोग क्या करना चाहेंगी ?”
उस महिला ने कहा, “सेठ जी, यदि आप चाहें तो हम लोग आचार, पापड़, बड़ी, सिलाई, कढ़ाई जैसा काम कर सकती हैं। अभी कुछ महिलाएं अपने व्यक्तिगत प्रयास से ये काम कर भी रही हैं, पर यदि हमें आपका साथ मिल जाए, तो यह बड़े पैमाने पर भी हो सकता है।”
सेठ जी ने कहा, “बहुत ही अच्छा सुझाव है आपका बहन जी। यदि आप लोग करना चाहें तो हम आचार, पापड़, बड़ी, सिलाई-कढ़ाई इन सब कामों के लिए अलग-अलग यूनिट खोल देंगे। जरूरत के मुताबिक आप लोगों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था करेंगे, ताकि कम समय, श्रम और खर्च में अधिक उत्पादन हो सके। मैं कल ही अपने कल्याण अधिकारी को आप लोगों के पास भेजूंगा। हर काम की शुरुआत के लिए हमें कम से कम बीस-बीस बहनों की जरुरत होगी। आप लोग अपनी-अपनी रूचि के अनुसार अपना नाम लिखवा दीजिएगा। फिर उसी के आधार पर आगे की योजना बनाई जाएगी।”
“वाह ! क्या बात है सेठ जी। हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि अब हम सब आपके साथ मिलकर काम करेंगी।” एक युवा महिला ने कहा।
सेठ जी कुछ सोचकर बोले, “मैं सोच रहा हूं कि शिशुवती महिलाओं की सुविधा के लिए कार्य परिसर के पास ही एक झूलाघर और एक कैंटीन भी खोल दिया जाए। झूलाघर का संचालन पूर्णतः नि:शुल्क रखेंगे जबकि कैंटीन नो-लॉस, नो प्रॉफिट के आधार पर करेंगे। इनका संचालन भी आप लोग ही करेंगी। आचार, पापड़, बड़ी, सिलाई, कढ़ाई और कैंटीन के काम में जो भी लाभ होगा, उसी के आधार पर आप लोगों को लाभांश दिया जाएगा।”
सबने पूरे उत्साह के साथ तालियां बजाकर सेठ जी के निर्णय का स्वागत किया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़