आतंकवाद
मेरे विचार से आतंकवाद को समाप्त करने के लिए उसके मूल पर जाना पड़ेगा कि आतंकवाद का पोषण एवं संवर्धन किन तत्वों द्वारा किया जा रहा है इसलिए हमें प्रथम इसके इतिहास पर गौर करना पड़ेगा कि आतंकवाद का उद्भव किस प्रकार हुआ है? इसके क्या कारण है ?
आतंकवाद की उपज कारण कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा सामान्य जनता में भय पैदा कर अपने कुत्सित मंतव्यों में सफल होना है ।
इस भावना से आतंकवादी सोच का प्रादुर्भाव हुआ है। ये स्वार्थी तत्व किसी भी संप्रदाय, धर्म ,जाति विशेष समूह या राजनीतिक समूह से संबद्ध अवसरवादी तत्व हो सकते हैं।
आतंकवाद के प्रमुख कारक दरिद्रता, अशिक्षा ,बेरोजगारी रूढ़िवादिता, धर्मांधता, अंधश्रृद्धा, सामाजिक एवं आर्थिक असमानता, प्रतिस्पर्धा , परस्पर द्वेष एवं प्रतिकार भावना, धन लोलुपता, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, राजनैतिक स्वार्थपरता , दमन विरुद्ध विद्रोह भावना इत्यादि हैं। जिसका लाभ उठाकर तथाकथित स्वार्थी तत्व जनसाधारण में दुर्भावना के बीज बोकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं।
जिसके लिए यह निरीह जनता को विभिन्न प्रलोभनों के माध्यम से प्रेरित कर अपने कुत्सित प्रयासों में सफल हो रहे हैं।
यह एक सोची-समझी साजिश का नतीजा है जो एक संगठित तरीके से निष्पादित की जाती है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि ये तत्व अपरिपक्व मस्तिष्क को प्रभावित करने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को शामिल कर उनमें नफरत की शिक्षा के बीज बोकर रोबोट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
और उन्हें फिदायीन आत्मघाती दस्तों और मानव बम की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
यह एक गंभीर विषय है कि आने वाली पीढ़ी में भी
यह आतंकवाद का जहर फैल रहा है।
अतः यदि आतंकवाद को खत्म करना हो तो पहले उन सभी तत्वों को उनके मूल पर खत्म करना होगा। चुन चुन कर उन सभी तत्वों को खत्म करना होगा जो आतंकवाद को प्रतिपादित , प्रश्रय और पोषित करते हैं। उन सभी माध्यमों को जो इसको बढ़ावा देते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसका समर्थन करते हैं पता लगाकर नष्ट करना होगा। चुन-चुन कर उन सभी ठिकानों को नेस्तनाबूद करना होगा जो आतंकवाद के प्रशिक्षण केंद्र हैं। एक संकल्प लेकर आतंकवादियों को उनके घर में घुसकर मारना होगा जिससे उनमें भय व्याप्त हो तभी आतंकवाद का समापन हो सकता है। कोरी वार्ताओं और सद्भावना से कोई काम नहीं होगा। आतंकवाद का दमन ही इस समस्या का समाधान है।
जिसके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।
उस मां के दर्द को कौन जाने जिसने अपना बेटा खोया है।
उस पत्नी के दर्द को कौन जाने जिसका जीवन अंधकार मय हो गया है।
उस बहन के दर्द को कौन जाने जिसमें अपना राखी का बंधन खोया है।
उस भाई के दर्द कौन जाने जिसने अपना दाहिना हाथ खो दिया है।
उस बाप के दर्द को कौन जाने जो दिल ही दिल में रोया है।
उस गांव के दर्द को कौन जाने जो अपने वीर की शहादत पर आंसू बहा रहा है।
कब तक करेगा अपने सपूतों को कुर्बान ये वतन
करदो नेस्नातबूद हर आतंकी इरादे करो कायम देश में अमन।
धन्यवाद !