#आज_का_दोहा
#आज_का_दोहा
■ जो कहीं बहुत अंदर से उपजा। अनायास, एक निर्झर की तरह:-
“खाई पर्वत खंडहर
कूप नहीं हमराज़।
सबने लौटा दी मुझे
मेरी ही आवाज़।।”
●प्रणय प्रभात7●
#आज_का_दोहा
■ जो कहीं बहुत अंदर से उपजा। अनायास, एक निर्झर की तरह:-
“खाई पर्वत खंडहर
कूप नहीं हमराज़।
सबने लौटा दी मुझे
मेरी ही आवाज़।।”
●प्रणय प्रभात7●