#आज_का_आभास-
#आज_का_आभास-
■ मैं तो हूँ, आपकी आप जानें।
【प्रणय प्रभात】
स्वार्थी संसार में हर उपयोगी इंसान की हैसियत एक गन्ने की तरह है। जिसे अंतिम बूंद तक के लिए तोड़ा, मरोड़ा व निचोड़ा जाता है और अंततः सूखे व निष्प्राण भूसे के रूप में घूरे पर पटकते हुए पशुओं के हवाले कर दिया जाता है।
संसार की इस क्षुद्र नीति को “यूज़ एंड थ्रो” की मानसिकता के अंतर्गत “रबर के एक संसाधन” की संज्ञा आज तक दी जाती रही। जिसका विकल्प एक शालीन व संसदीय शब्द के रूप में देने का प्रयास कर रहा हूँ बस। ताकि लोग बेहिचक बोल सकें।
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-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)