आज मन व्यथित है
आज मन व्यथित है
हृदय बिंधा सा है
तो कैसे री उमंग तू आएगी
निर्दोष मर रहा है
पापी हँस रहा है
तो कैसा उत्सव मनाएगी!
री! बोल उमंग फिर तू कैसे आएगी?
हृदय रक्त से सींचित है
विधि भी विपरीत है
तो फिर कैसे मुस्काएगी!
बोल तो उमंग तू कैसे आएगी!
दनुज अट्टहास कर रहा है
भक्तों पे गोलियाँ बरसा रहा है
तो हिय में क्या रक्तिम लास लाएगी?
बता तो उमंग तू किधर से आएगी!
विधाता के दृग बंद हैं
भक्ति रक्त से सनी है
तो बोल क्या लाज न आएगी ।
जानता हूँ अ उमंग तू नहीं आ पाएगी।
सोनू हंस✍✍✍✍